…क्योंकि सपना है अभी भी

तोड़कर अपने चतुर्दिक का छलावा जबकि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा  विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था

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खानाबदोशी

इस खानाबदोशी में धूप से बचने के लिए मुझे एक छाते की दरकार थी जबकि सारे रंगीन छाते मुल्क के बादशाह के महल में सजाकर रखे गए थे

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होली

साजन, होली आई है! सुख से हँसना, जी भर गाना मस्ती से मन को बहलाना मस्ती से मन को बहलाना पर्व हो गया आज– साजन, होली आई है हँसाने हमको आई है!

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अकेले आदमी की लौ

यह दुनिया शिलाखंड-सी... मगर वह आदमी अकेला तब भी रास्तों पर चल रहा होगा। वह गल रहा होगा हर लौ में सोये वक्त को जगाता हुआ।तुम नहीं कह सकते कि बंदूकों ने आदमी की लौ छीन ली है।

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जीवन के रंग

अमलतास हो या हो गुलमोहर फूले या ना फूले, हम दोनों जीवन के रंग को इंद्रधनुषी बनाएँ औरों को भी जीने और जीने देने का पाठ-पढ़ाएँ!

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मैं सरकार नहीं हूँ

मैं अपने परिवार का दुःख किसी को नहीं बताता मरा नहीं है मेरी आँखों का पानी मैं अपना काम आप करता सदियों से हूँ वहाँ जहाँ कोई सरकार नहीं!

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