कब्रगाह में रोने की जगह
कब्रगाह में रोने की जगह अब वे युद्ध के मैदानों में हैं उनके हाथों में हथियार चमकते रहते हैं मातम को छोड़कर अब मर्दों की तरह वे आजादी के सिर्फ स्वप्न देखती हैं रात-दिन।
कब्रगाह में रोने की जगह अब वे युद्ध के मैदानों में हैं उनके हाथों में हथियार चमकते रहते हैं मातम को छोड़कर अब मर्दों की तरह वे आजादी के सिर्फ स्वप्न देखती हैं रात-दिन।
मालूम है मुझे कल के महलआज बिखरे राखों में पड़ेधुएँ के फाहे सेअँधे कुएँ में पड़ा मैं, गायब नींद हैपस्त मेरे हौसले, मेरी खामोश चीख सेन मिलना बाकी किसी सेजमीनें इतनी सूखी, न सपने उगे
उन पर धूल जम रही है और भनभनाती मक्खियाँ हैं आसपासअमित संस्कार के लिए नहीं है कोई सिवाय गिद्धों के और गिद्धों ने शुरू कर दिया है अपना काम।
तुम्हारे होने भर से धरती महसूसती थी अपनापन और प्यार ऐसा कि तुम हो अपने धरती पर बरसाने वाले स्नेहहीरा-मोती तुम जोतते थे मुझे तो लगता था कि रूई के फाल से
आओ मिलकर जलाएँ एक दीया भारत माँ के नामदेश के जन-जन की है यही पुकार अब नहीं जलाएँगे चाईनीज दीये, बल्ब और लड़ियाँ अब तो जलाएँगे सिर्फ अपनी माटी से बने दीये वे दीये, जिसे बनाए हैं हमारे कुम्भकारों ने अपने श्रम से अपनी मेहनत से
मेरे गोईं ने किया था एक दिन देहचोरई, अब वह भी निराश और हताश है आपके चले जाने से मालिक, आपको मालूम है कई दिनों तक खल्ली और भूँसा नहीं मिलने पर भी