अंतिम संस्कार के लिए

उन पर धूल जम रही है और भनभनाती मक्खियाँ हैं आसपासअमित संस्कार के लिए नहीं है कोई सिवाय गिद्धों के और गिद्धों ने शुरू कर दिया है अपना काम।

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धरती

तुम्हारे होने भर से धरती महसूसती थी अपनापन और प्यार ऐसा कि तुम हो अपने धरती पर बरसाने वाले स्नेहहीरा-मोती तुम जोतते थे मुझे तो लगता था कि रूई के फाल से

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एक दीया भारत माँ के नाम

आओ मिलकर जलाएँ एक दीया भारत माँ के नामदेश के जन-जन की है यही पुकार अब नहीं जलाएँगे चाईनीज दीये, बल्ब और लड़ियाँ अब तो जलाएँगे सिर्फ अपनी माटी से बने दीये वे दीये, जिसे बनाए हैं हमारे कुम्भकारों ने अपने श्रम से अपनी मेहनत से

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बैल का प्रलाप

मेरे गोईं ने किया था एक दिन देहचोरई, अब वह भी निराश और हताश है आपके चले जाने से मालिक, आपको मालूम है कई दिनों तक खल्ली और भूँसा नहीं मिलने पर भी

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दशरथ माँझी

दशरथ माँझी पहाड़ से भी है ऊँचा जिसे देखकर पहाड़ के उड़ जाते हैं होश दशरथ माँझी सिर्फ तुम्हारा नाम ही है काफी पहाड़ को थर्राने के लिए क्योंकि तुम्हारे अंदर बसी है फागुनी देवी जैसे आगरे की ताजमहल में मुमताज

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