संताप
कुम्हला जाता है हृदय इन अघातों से मैं शक्तिहीना दु:ख की रोटियाँ सेंकते जला लेती हूँ उँगलियाँ फिर भी रह जाते हैं मेरे शब्द वंचित उस दहक से जिसने मेरे पोर झुलसा दिए
कुम्हला जाता है हृदय इन अघातों से मैं शक्तिहीना दु:ख की रोटियाँ सेंकते जला लेती हूँ उँगलियाँ फिर भी रह जाते हैं मेरे शब्द वंचित उस दहक से जिसने मेरे पोर झुलसा दिए
मेरे गाँव की औरतें चूल्हे बनाती हैं ढाल देती हैं आकार गढ़ती हैं मेरे गाँव की औरतें आँगन लीपती हैं कँगूरे बनाती हैं उतार-चढ़ाव का ध्यान रखती हैंउनके फुर्तीले हाथ देखकर मैं अक्सर सोचती हूँ
वो पीसती है हरी-हरी नरम पत्तियाँ और गहरे काले लम्हे सिलेटी से चुभने वाले किस्से वो पीसती है मीठे काजू, भीगे बादाम और पीस देना चाहती है
तुम मौन में तराशती हो शब्दों के लौह औजार भावावेगों के सिरों को थाम कल्पना और यथार्थ के संतुलन में लिखती हो न जाने कितनी कहानियाँ कहानियाँ तुम्हारे लिए जीवन सत्य के अलावा
जो लड़े और युद्ध-क्षेत्रे मरे सचमुच वे ही वीर कहलाए मैं, अपने सिर ऊपर तीर रखता हूँ और सीने में अपार हौसला भरता हूँ मैं, हर दिन एक युद्ध लड़ता हूँ और हर दिन एक नए जीवन के लिए