बदशक्ल लड़कियाँ

मन में आशाओं का हरा जंगल उगाये बदशक्ल लड़कियाँ सोचती हैं एक-न-एक दिन जरूर चमकेगा दुनिया की आँखों में आत्मा को दिखाने वाला आईने की तरह

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वे दोनों लड़कियाँ

साथ-साथ रहती हैं वे दोनों लड़कियाँ दो विपरीत घरानों में पैदा होकर भी एक मालकिन दूसरी नौकरानी की दोनों पढ़ती हैं साथ-साथ एक ही क्लास में दोनों का सोच एक, चिंतन एक दोनों मेधावी, व्यवहार-कुशल

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जिसे चाहता हूँ भाषा में

मैं हूँ और तुम भी मेघ हैं और समंदर भी पहाड़ है और समतल भी... होगी तो जरूर कहीं न कहीं ऐसी भाषा भी जिसमें रोना चाहता हूँ मनुष्य की तरह मनचाही देर तक।

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शांतिः शांतिः शांतिः

कैसे हैं ये जख्म इन कविताओं के जो बहुत ऊँचा उठ नफरतों से, द्वेषों से उठाए हाथ बस कर रहे हैं पाठ... शांतिः शांतिः शांतिः ।

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