बदशक्ल लड़कियाँ
मन में आशाओं का हरा जंगल उगाये बदशक्ल लड़कियाँ सोचती हैं एक-न-एक दिन जरूर चमकेगा दुनिया की आँखों में आत्मा को दिखाने वाला आईने की तरह
मन में आशाओं का हरा जंगल उगाये बदशक्ल लड़कियाँ सोचती हैं एक-न-एक दिन जरूर चमकेगा दुनिया की आँखों में आत्मा को दिखाने वाला आईने की तरह
साथ-साथ रहती हैं वे दोनों लड़कियाँ दो विपरीत घरानों में पैदा होकर भी एक मालकिन दूसरी नौकरानी की दोनों पढ़ती हैं साथ-साथ एक ही क्लास में दोनों का सोच एक, चिंतन एक दोनों मेधावी, व्यवहार-कुशल
हिमालय के आँगन में उसे प्रथम किरणों का दे उपहार उषा ने हँस अभिनंदन किया और पहनाया हीरक हार।
मैं हूँ और तुम भी मेघ हैं और समंदर भी पहाड़ है और समतल भी... होगी तो जरूर कहीं न कहीं ऐसी भाषा भी जिसमें रोना चाहता हूँ मनुष्य की तरह मनचाही देर तक।
कैसे हैं ये जख्म इन कविताओं के जो बहुत ऊँचा उठ नफरतों से, द्वेषों से उठाए हाथ बस कर रहे हैं पाठ... शांतिः शांतिः शांतिः ।
फिर! मैं चाहती हूँ कि– यह गान जो साक्षी है मेरा-तुम्हारा उसे बचे रहना चाहिए सदा के लिए!