शांतिः शांतिः शांतिः
कैसे हैं ये जख्म इन कविताओं के जो बहुत ऊँचा उठ नफरतों से, द्वेषों से उठाए हाथ बस कर रहे हैं पाठ... शांतिः शांतिः शांतिः ।
कैसे हैं ये जख्म इन कविताओं के जो बहुत ऊँचा उठ नफरतों से, द्वेषों से उठाए हाथ बस कर रहे हैं पाठ... शांतिः शांतिः शांतिः ।
फिर! मैं चाहती हूँ कि– यह गान जो साक्षी है मेरा-तुम्हारा उसे बचे रहना चाहिए सदा के लिए!
बीच राह में तब... ऐसी ठोकर लगी कि मेरे पाँव से रिसते रक्त की बूँदे, रेत पर धँसती चली गई और इस रक्त की गंध उड़कर– आसमान में फैल गई तब शायद्...मैं उस आसमान को निहारना भूल गई थी
जब से मालकिन की बेटी ने उसे पुरानी फ्रॉक दी है, उसकी खुशी का ठिकाना नहीं उसे याद आई कितना खुश थी उसकी माँ जब मालकिन ने उन्हें पुरानी साड़ी दी थी
बगल में रखी पाइप से फुहरा छींटती दादी दादी है तो सागबाड़ी है, सागबाड़ी है तो गाजर, चिचिंधा, टमाटर, करैले हैं
ट्रेन के आते दौड़ पड़ते, गिड़गिड़ाते ढोने को सामान, यात्री खुश होते, वर्दीधारी कुली के बदले में बड़े सस्ते में पट जाते बच्चे