योद्धा
जब-जब मानव परछा जाते हैं संकट के बादलहूंकार करता हुआअपना विकराल रूपदिखलाता– करता प्रहारतो, बारिश की बूँदों साकर्म रत
जब-जब मानव परछा जाते हैं संकट के बादलहूंकार करता हुआअपना विकराल रूपदिखलाता– करता प्रहारतो, बारिश की बूँदों साकर्म रत
तांडव कर रही थीं उसके अंतर्मन की परछाइयाँ और शांत मुख मंडल तेज धड़कन गहरी आँखें सपाट ललाट सभी विद्रोह कर रहे थे
रात के गहराते ही जब शिथिल पड़ जाती हैं इंद्रियाँ बढ़ जाता है दर्द सुई सी चुभती हैं यादें और उन यादों में लिपटा अतीत जहाँ मैं निःसहाय दिखती थी
जब तक आप कविता लिखते रहते हैं न जाने आपने ध्यान दिया है कि नहीं– फन फैलाए साँप घूमता ही रहता है आसपास फुफकारते हुए सृजन के क्षणों को डंसने की जन्म लेते ही अक्षर को मारने की भरसक कोशिश करते हुए
‘प्यार ही तो है इस संसार के लिए जरूरी साधन’ यह घोषणा करने के लिए मस्जिद और मंदिर की तरह नहीं इंसानों की तरह करते ही रहेंगे कोशिश।
सब शब्दों से अनछुआ एक विचित्र शब्द सा कराहता है मन। विचित्र बात है थकान मिटाते ही अगले पल फिर से प्रकट हो जाती है वह किसी दूसरे रूप में। फिर से संघर्ष... संसार के दुखों से बेचैन मन कोई पाबंदी भी नहीं रहम भी नहीं।