एक पेड़ की तरह

वैसे भी क्या रखा है अब इन घीसी-पीटी पुरानी बातों की बतकही मेंहाँ इतना भर जरूर कह सकता हूँ एक लंबे अंतराल के बाद तुमसे अलग रहते हुए घर से काम पर जाने और काम से घर लौटने के रास्ते में एक पेड़ की तरह थी तुम मेरे लिए

और जानेएक पेड़ की तरह

सैलाब

क्या हुई खामोशियाँ कि झर गई पत्तियाँ सारे दरख्तों की, मेरी नजर में यूँ कैसे इसके पतझर हो गया!धूप थी खिली चटक कोई साया पसर गया, मेरे वजूद में आकर आहिस्ता-से कोई फूल खिल गया!

और जानेसैलाब

जनता का हक़ मिले कहाँ से

सच को यूँ मजबूर किया जाता है झूठ-बयानी पर माला-फूल गले लटके हैं पीछे सटी दोनाली हैदौलत शोहरत बंगला-गाड़ी के पीछे सब भाग रहे फ़सल जिस्म की हरी भरी है ज़हनी रक़बा ख़ाली हैसच्चाई का जुनूँ उतरते ही हम माला-माल हुए हर सूँ यही हवा है रिश्वत हर ताले की ताली है

और जानेजनता का हक़ मिले कहाँ से

अर्थ

एक अच्छा ख़ासा पत्थर लेकर अपने सिर को चूर-चूर कर दे किंतु फिर उसने तुरंत... चेहरे पर से पंजे हटा लिए और घबरा कर अगल-बगल देखा किसी को न देखता पाकर उसे अच्छा लगा

और जानेअर्थ

कंकाल और चाँद

डरावनी अँधियारी में, यह सुंदर चाँद कहाँ से उतरा मेरे भीतर के आकाश में! डरावना कंकाल और सुंदर चाँद चलते हैं दोनों साथ-साथ जीवन में क्या!

और जानेकंकाल और चाँद