कजरौटा
निरख रही है वह सूनी सूनी आँखों सेताखा पर रखा दीया जल रहा धीरे-धीरे समय की भट्टी में सुलग रही वह भी धीरे धीरे
निरख रही है वह सूनी सूनी आँखों सेताखा पर रखा दीया जल रहा धीरे-धीरे समय की भट्टी में सुलग रही वह भी धीरे धीरे
कविता की रचना सिर्फ रचना नहीं है मेरे लिए मन की छटपटाहट जब खौलते पानी की तरह हीरह रह कर पट पट की आवाज से मेरे मन प्राण को जलाती
घर-बाहर, दृश्य-अदृश्य हर जगह होती है एक देहरी जिसे पार करना मना होता है औरतों को क्योंकि, कहीं भी कुछ हो कौंधता है
जिस दिन मैंने इस दुनिया में आकर प्रदूषण भरी स्वांस लिया उसी दिन मेरे बप्पा ने दरवाजे पर इस नीम के पेड़ को लगाया था।
बेटी मात्र बेटी ही नहीं होती माँ-बाप की लाड़ली होती है परिवार की लालिमा होती है समाज का मान-सम्मानऔर देश की धरोहर होती है।
जब मैं देखता हूँ अपने पूर्वजों कीटँगी हुई तस्वीरें, तो मन में बातें दृढ़ता दर्द भरी उभर आती है कि मैं भी तो टंग जाऊँगा इनके साथ ही एक दिन