किराए की कोख
आज कल मकान, दुकान और सामान की तरह किराए की कोख भी मिलने लगी है अच्छा है अब तो किस्तों पर माँ की ममता भी बाजार में बिकने लगी है।
बचाए रखना है तुम्हें
बचाए रखना है तुम्हें, बचाए रखना है उनसे, बचाए रखना है अपने सिर के भूत को, प्रेत को जिन को, डाकिनों को और सबसे ज्यादा कविता को
एक बच गया आदमी जो चीखा
फिलहाल तो हारी हुई है बारबार पंजा चलाती यह उफनी हवा बंद कुंडियों से। और वह हादसे से बचे किसी भी स्वार्थी आदमी-सा भयभीत अपनी खैर का जश्न मना रहा है भीतर।
जहर
बहुत दूर तक नहीं जाना है आसपास ही देखना है बगल में सहमी-सहमी खड़ी हवा को छूना है समझने के लिए कि जहर क्या होता है
बरसेगा पानी
भैरव भगवान खेती के लिये बरसेगा पानी भागेगा खेतों का बंजरपन सूखे पत्तों में भी जागी हरियाली।
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