अस्तित्व
इस पर मुहर कौन लगाता सारे मसले कहाँ से उठते सारे फैसले कहाँ तक जाते मेरे परों को काटा गया मेरे जिस्म को नोचा गया
इस पर मुहर कौन लगाता सारे मसले कहाँ से उठते सारे फैसले कहाँ तक जाते मेरे परों को काटा गया मेरे जिस्म को नोचा गया
तोड़कर अपने चतुर्दिक का छलावा जबकि घर छोड़ा, गली छोड़ी, नगर छोड़ा कुछ नहीं था पास बस इसके अलावा विदा बेला, यही सपना भाल पर तुमने तिलक की तरह आँका था
इस खानाबदोशी में धूप से बचने के लिए मुझे एक छाते की दरकार थी जबकि सारे रंगीन छाते मुल्क के बादशाह के महल में सजाकर रखे गए थे
जो बदल दे आप अपना पाट, अपना द्वार यह संबंध क्या वैसी नदी है? और फिर इन बादलों की तरह नित घिरना, बरसना और छँट जाना क्या नहीं आकाश की यह त्रासदी है?
सचकहीं कुछ भी नहीं थाबस हवा के पाँवपत्थर हो गए थेतड़पकर रह गए थे शब्दमन के हाशिये परकाँपते लब परछुटता-सा जा रहा था
वह जन्मेगा बार बार राजपथ की कंकरीली छाती चीर कचनार दूब की तरह!वह गाएगा क्योंकि गाना ही सभ्यता की