बचाए रखना है तुम्हें
बचाए रखना है तुम्हें, बचाए रखना है उनसे, बचाए रखना है अपने सिर के भूत को, प्रेत को जिन को, डाकिनों को और सबसे ज्यादा कविता को
बचाए रखना है तुम्हें, बचाए रखना है उनसे, बचाए रखना है अपने सिर के भूत को, प्रेत को जिन को, डाकिनों को और सबसे ज्यादा कविता को
फिलहाल तो हारी हुई है बारबार पंजा चलाती यह उफनी हवा बंद कुंडियों से। और वह हादसे से बचे किसी भी स्वार्थी आदमी-सा भयभीत अपनी खैर का जश्न मना रहा है भीतर।
बहुत दूर तक नहीं जाना है आसपास ही देखना है बगल में सहमी-सहमी खड़ी हवा को छूना है समझने के लिए कि जहर क्या होता है
भैरव भगवान खेती के लिये बरसेगा पानी भागेगा खेतों का बंजरपन सूखे पत्तों में भी जागी हरियाली।
नीलम के सुचि खम्भ पै कै, मनि-मानिक-माल-प्रभा हिय हूलै कै निसि के कमनीय कलेवर, सूरज के करै जोति अतूलै ‘प्यारे’ किधौं जमुना जल पै, अरबिंद के बृंद लिखे मन भूलै स्याम सरीर पै सोहै गुलाल, कै किंसुक-माल तमाल पै फूलै।
कोई शब्दों से संवाद करना चाहता है वे मौन हैं मौन के अंदर व्यथा, आक्रोश, मुस्कान तलाशता है वहाँ कुछ नहीं है शब्द दरवाजे उढ़का कर सो गए हैं