फाग सवैया
नीलम के सुचि खम्भ पै कै, मनि-मानिक-माल-प्रभा हिय हूलै कै निसि के कमनीय कलेवर, सूरज के करै जोति अतूलै ‘प्यारे’ किधौं जमुना जल पै, अरबिंद के बृंद लिखे मन भूलै स्याम सरीर पै सोहै गुलाल, कै किंसुक-माल तमाल पै फूलै।
नीलम के सुचि खम्भ पै कै, मनि-मानिक-माल-प्रभा हिय हूलै कै निसि के कमनीय कलेवर, सूरज के करै जोति अतूलै ‘प्यारे’ किधौं जमुना जल पै, अरबिंद के बृंद लिखे मन भूलै स्याम सरीर पै सोहै गुलाल, कै किंसुक-माल तमाल पै फूलै।
कोई शब्दों से संवाद करना चाहता है वे मौन हैं मौन के अंदर व्यथा, आक्रोश, मुस्कान तलाशता है वहाँ कुछ नहीं है शब्द दरवाजे उढ़का कर सो गए हैं
लाते हैं खुशियाँ ही खुशियाँ पूजा घर नहीं देखता बढ़ने लगी है आँधी उम्मीद की जैसे पास आने लगी खुशी की आहट
देशभक्ति के खूब नारे उछालता, अपने-आप को दक्षिणपंथी बताता न वामपंथी, समय देख गिरगिट की तरह रंग बदलता, शुद्ध अवसरवादी होता है सफेदपोश।
सभी सड़कें चौड़ी हैं या चौड़ी कर दी गई हैं, सिर्फ यही सड़क सँकरी है हमेशा जाम लगा रहता है, ट्रॉफिक वालों का पसीना छूटता है इसे नियंत्रित करने में
सहज नहीं होता बचपन, यौवन और बुढ़ापा किसी घर-आँगन में छोड़ बिना मुड़े निकल जाना गोबरलिपी ज़मीन की गंध खपरैलों में बसे घोंसलों में गौरैया के अंडे दरकती दीवारों में