आदिवासी
फूलों के परिधान पहन जब-जब सरहुल आता है माँदर, ढोल, नगाड़े बजते जंगल भी गाता है पाँवों में थिरकन, तन में सिहरन आँखों में ख्बाब!
फूलों के परिधान पहन जब-जब सरहुल आता है माँदर, ढोल, नगाड़े बजते जंगल भी गाता है पाँवों में थिरकन, तन में सिहरन आँखों में ख्बाब!
मैं मौन हूँ, मैं खामोश हूँ, मैं चुप हूँ चराचर जगत डूबा गहन सन्नाटे में मैं अनंत शून्य हूँ आकाश समेटे धरा पर
अँधेरा कम नहीं होता हर सीटी खत्म करती है एक इंतज़ार धीरे-धीरे ऊँघने लगते हैंसभी सवाल निरूत्तर से!
लोग बन गए ठीक वैसा, जैसा वह चाहा पर उनकी परछाई बड़ी नहीं बनी, रही बौनी ही हंगामा फिर बरपा वह मुस्कुराया फिर हँसा ठठाके
रंगों का सेवक रंग खतरे में है रंगना आपके बीच फैलना फैलना सबके बीच रंगना
भीड़ कभी-कभी महज भ्रम होती है कभी दिखती, कभी अदृश्य होती है कभी चलती, कभी रुकती है कभी सोती, कभी झुकती है।