खुशी की आहट
लाते हैं खुशियाँ ही खुशियाँ पूजा घर नहीं देखता बढ़ने लगी है आँधी उम्मीद की जैसे पास आने लगी खुशी की आहट
लाते हैं खुशियाँ ही खुशियाँ पूजा घर नहीं देखता बढ़ने लगी है आँधी उम्मीद की जैसे पास आने लगी खुशी की आहट
देशभक्ति के खूब नारे उछालता, अपने-आप को दक्षिणपंथी बताता न वामपंथी, समय देख गिरगिट की तरह रंग बदलता, शुद्ध अवसरवादी होता है सफेदपोश।
सभी सड़कें चौड़ी हैं या चौड़ी कर दी गई हैं, सिर्फ यही सड़क सँकरी है हमेशा जाम लगा रहता है, ट्रॉफिक वालों का पसीना छूटता है इसे नियंत्रित करने में
सहज नहीं होता बचपन, यौवन और बुढ़ापा किसी घर-आँगन में छोड़ बिना मुड़े निकल जाना गोबरलिपी ज़मीन की गंध खपरैलों में बसे घोंसलों में गौरैया के अंडे दरकती दीवारों में
कुछ शब्द रह गए थे मन में जगने पर भी अखबार से निकलकर बच्चा की पुलक में समायी थी– छोटी-छोटी खुशी मिसरी घोल रहे थे कानों में
अम्बर राम के पहले भी आये कितने राम परंतु मालिक के दाँत किटकिटाते उखाड़ देते अपना तम्बूमालिक के गुस्साते अक्सर पिचक जाती कोई थाली या फूट जाता लालटेन