आधी दहलीज पर औरतें

उम्र की आधी दहलीज पार कर चुकी औरतें सुबह-सुबह ढूँढ़ती हैं जीवन में अदरक की चाय सी महक देर तक बैठ सुस्ताती हैं सुनती हैं बीत चुकी उम्र की गूँज

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एक लालटेन तो जलाओ

मर न जाए आँखों के सपने पल पल झरती इस दुनिया में कि उन्हें छूने दो अँगुलियों से नीलगगन आकाश में लटकता सूरज चिढ़ा रहा है तुम्हें कौन?मंद हो गई है चाँद की रोशनी कि भटकती राह में एक दिया ही काफी है उसे आँधियों से बचा ले जाओ, वहाँ

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कूड़े पर कुछ बीनते बच्चे

उन्हें नहीं मालूम बचपन का प्यार न ही माँ की लोरी। वे नहीं जानते फूल कैसे खिलते हैं? वे फूलों के रंग के बारे में नहीं सोचते न तितली के विषय न शहद के बारे में

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फर्क क्या हम में है

1947...भारत! हाँ, देश अपना आजाद हुआ पर कुछ अपने पीछे छूट गए! मिलकर देश आजाद किया फिर दो हिस्सों में बँट गए न वजह मालूम है न मजबूरी का है पता बस बनाकर धर्म को ढाल देश अपना दो हिस्सों में बँट गया!

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