समय की नदी
इस नदी से उस नदी तक आओ, एक पुल बनाएँबीच में न जाने कितने बहाव कितने ज्वार भाटे थाम कर लहरों को बस मुट्ठियों में
इस नदी से उस नदी तक आओ, एक पुल बनाएँबीच में न जाने कितने बहाव कितने ज्वार भाटे थाम कर लहरों को बस मुट्ठियों में
उम्र की आधी दहलीज पार कर चुकी औरतें सुबह-सुबह ढूँढ़ती हैं जीवन में अदरक की चाय सी महक देर तक बैठ सुस्ताती हैं सुनती हैं बीत चुकी उम्र की गूँज
मर न जाए आँखों के सपने पल पल झरती इस दुनिया में कि उन्हें छूने दो अँगुलियों से नीलगगन आकाश में लटकता सूरज चिढ़ा रहा है तुम्हें कौन?मंद हो गई है चाँद की रोशनी कि भटकती राह में एक दिया ही काफी है उसे आँधियों से बचा ले जाओ, वहाँ
उन्हें नहीं मालूम बचपन का प्यार न ही माँ की लोरी। वे नहीं जानते फूल कैसे खिलते हैं? वे फूलों के रंग के बारे में नहीं सोचते न तितली के विषय न शहद के बारे में
1947...भारत! हाँ, देश अपना आजाद हुआ पर कुछ अपने पीछे छूट गए! मिलकर देश आजाद किया फिर दो हिस्सों में बँट गए न वजह मालूम है न मजबूरी का है पता बस बनाकर धर्म को ढाल देश अपना दो हिस्सों में बँट गया!
वह मर गया एक खबर है इसे छापो मगर क्या वह आज ही मरा उस दिन तुमने नहीं मारा था उसे जब वह प्यासा था और तुमने