तन्हाइयों में
ऐसा कि बेखुद अपनी सरक गई, धड़कने रुक गई हैं।किसी आहट पर चौंकती नहीं मैं नहीं होती कविता अधीर
एक तलाश ऐसी भी
बरगद की तलाश में टहलते अहसास को मैंने चेतावनी दी आगाह किया कुल्हाड़ियों की तेज धार से फिर भी जज्बात मुखर हो गए।लाख सँभाला समझाया दिखलाया राह के रोड़े रूसवाइयों के थपेड़े फिर भी उग आए
समय की नदी
इस नदी से उस नदी तक आओ, एक पुल बनाएँबीच में न जाने कितने बहाव कितने ज्वार भाटे थाम कर लहरों को बस मुट्ठियों में
आधी दहलीज पर औरतें
उम्र की आधी दहलीज पार कर चुकी औरतें सुबह-सुबह ढूँढ़ती हैं जीवन में अदरक की चाय सी महक देर तक बैठ सुस्ताती हैं सुनती हैं बीत चुकी उम्र की गूँज
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