शिकायत
मुझे शिकायत है स्याही पीली क्यों नहीं होती धरती लाल और सूरज से हरी किरणें क्यों नहीं निकलती पीली स्याही जल्द ही कागज से उड़ जाती और ढेर सारे वाद-विवाद हवा बन कर्पूर हो जाते
मुझे शिकायत है स्याही पीली क्यों नहीं होती धरती लाल और सूरज से हरी किरणें क्यों नहीं निकलती पीली स्याही जल्द ही कागज से उड़ जाती और ढेर सारे वाद-विवाद हवा बन कर्पूर हो जाते
गिलहरी दौड़ती है जाना चाहती है रस्ते के उस पार पता नहीं जिंदगी की तरफ या मौत की तरफपर वह दौड़ती है एकदम आ जाती है अचानक सामने मौका भी नहीं देगी बचने बचाने का दब जाती है पहिए के नीचे
बहुत तमन्ना है माँ की वह जाए हज़ पर पिछले पाँच-छह साल से मन मसोसकर रह जाती याद करती चालीसों दिन
एक बच्चा घुटनों के बल चलता खड़ा होने की कोशिश में बार-बार गिरता बार-बार उठता लोग तालियाँ बजाते हैं उसे उँगली पकड़ चलना सिखाते हैं कुछ लोग देने को अच्छे संस्कार उसे ‘बालोहं जगदानंद...’ रटाते हैं।