गिलहरी
रहती है मेरे घर के पीछे बाग के एक दरख्त पर उछलती, कूदती, फरफराती एक डाल से दूसरी पर बंदरिया सी छलाँग लगाती
रहती है मेरे घर के पीछे बाग के एक दरख्त पर उछलती, कूदती, फरफराती एक डाल से दूसरी पर बंदरिया सी छलाँग लगाती
दिल में जब दर्द जगा हो, तो लिखा जाता है घाव सीने पे लगा हो, तो लिखा जाता हैखुशी के दौर में लब गुनगुना ही लेते हैं गम-ए-फुरकत में भी गाओ, तो लिखा जाता हैहाल-ए-दिल खोल के रखना, तो बहुत आसाँ है हाल-ए-दिल दिल में छुपा हो, तो लिखा जाता है
ये जो तुम मुझको मुहब्बत में सजा देते हो मेरी खामोश वफाओं का सिला देते होमेरे जीने की जो तुम मुझको दुआ देते हो फासले लहरों के साहिल से बढ़ा देते होअपनी मगरूर निगाहों की झपक कर पलकें मेरी नाचीज सी हस्ती को मिटा देते हो
मस्जिदें खामोश हैं, मंदिर सभी चुपचाप हैं कुछ डरे से वो भी हैं, और सहमे सहमे आप हैं वक्त है त्यौहार का, गलियाँ मगर सुनसान हैं धर्म और जाति के झगड़े बन गए अब पाप हैं
जब जब सम्मुख तम गहराया, मन सदा तुम्हारी शरण गया संघर्षों में, तूफानों में, तुमसे ही मन का मरण गया,
है मसीहा रहगुजर मगरबस गिराता गाज देखिए भूख में जनता यहाँ वहाँ ख्वाब यूँ स्वराज देखिए नाच गाना जश्न आजकलमौज में है ताज देखिए