सीढ़ियाँ

मजदूर इस्तेमाल करते हैं सीढ़ी सीढ़ी और बीड़ी मजदूर के ही काम आती है कभी किसी नाटक में मंच पर दिख जाती है कोई सीढ़ी अभिनेता जिससे कई तरह के काम लेते हैं बैठते हैं दौड़ते हैं खड़े हो जाते हैं उस पर लुकाछिपी का खेल खेलते हैं

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कितनी चाह कितने रंग

सो चलते रहे पाने-खोने के खेल में हारते और हाथ मलते रहे अटके हुए भटके हुए जहाँ पहुँचे, जहाँ ठहरे वहाँ अपने हिस्से बस इक आह थी जिसे बार-बार बनाना चाहा

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सच

यह सच है कि सच के बहुत सारे पहलू होते हैं लेकिन इतना उलझा हुआ भी नहीं होता सच जितना उसे बना दिया जाता है वह तो निरीह, सीधा-सादा अपनी राह चलने वाला होता है।

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प्रश्न के जवाब

रौशनदान में रह रही गौरैया ने घोंसले के तिनकों में छोड़ा है एक प्रश्न अँधियारी रात में शहर के भय भरे एकांत में छिपी लड़कियों ने माँगा है जवाब अपने कुचले गए वजूद का पानी में भीगती, जाड़े में ठिठुरती

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माँ ने कहा था

माँ ने कहा था बेटी, घर-परिवार में सबके खाने के बाद ही खाना बड़ों की किसी बात का जवाब मत देना ससुराल में नौकर तक को आप कहकर बुलाना माँ ने कहा था बेटी, कुल की लाज रखना पति की लंबी आयु के लिए तीज-त्योहार में व्रत रखना

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यथार्थ

मैं पी रही थी चाय कुर्सी पर बैठी और वो बग़ल में ज़मीन पर पूरी दुनिया पसारे मैं लिखा-पढ़ी में व्यस्त तो उसका मन अटका हुआ था पाप-पुण्य में अगले सातों जनम को सुखमय

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