सहयात्रा के पचहत्तर वर्ष
जब आया जलजला पाँव काँपने लगे डर से बढ़ कर थाम लिया हमने इक दूजे को कर से कितना कुछ टूटा-फूटा पर हम न कभी रीते
जब आया जलजला पाँव काँपने लगे डर से बढ़ कर थाम लिया हमने इक दूजे को कर से कितना कुछ टूटा-फूटा पर हम न कभी रीते
उत्सवों और त्योहारों में तुम्हारी कथा की गूँज भरी होती है तुम्हारी मनोहारी व्याप्ति देखने के लिए भीतरी आँखें खुली होनी चाहिए मुक्त होना चाहिए मन-मंदिर का द्वार
कविता का शब्द हो जाना स्वप्न है मेरा कविता का शब्द बनकरअव्यक्त को व्यक्त करना अभिलाषा है मेरी अगर कविता में झाँकने का सहूर है
सबके पहिले जो रूप रंग रस भीनो सबके पहिले विद्याफल जिन गहि लीनो अब सबके पीछे सोई परत लखाई हा हा, भारत दुर्दशा न देखी जाई! जहँ भए शाक्य हरिचंदरु नहुष ययाती
चिड़िया का दहेज नहीं सजताचिड़िया को शर्म नहीं आतीतो भी चिड़िया का ब्याह हो जाता है चिड़िया के ब्याह में पानी बरसता हैपानी बरसता है पर चिड़िया कपड़े नहीं पहनती चिड़िया नंगी ही उड़ान भरती है
देती हूँ उन्हें एक दृष्टि पथ खुद तय करने देती हूँ अपना रास्ता भटकाव की भीड़ में नहीं बनने देती हूँ आत्ममुग्धता का शिकार