ख्वाब का बाजार

ख्वाब का बाजार देते हैं कर उसे अंगार देते हैंआदमी जलता उसी में यूँ ताज कर गुलनार देते हैंहै धरम उनका मसीहाई जीस्त कर अखबार देते हैं

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रहगुजर में आग

रहगुजर में आग है अभी तख्त पर एक नाग है अभीहै सिंकदर रहनुमा मगर मुल्क पर वो दाग है अभीहै लुगाई सल्तनत नई मौज करता काग है अभी

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मुल्क में हवाला है

मुल्क में हवाला है आदमी किवाला हैख्वाब का समुंदर है लूटता निवाला हैदर्द अब जमाने में हर कदम रिसाला हैआजकल बहारा यूँ दीखती उजाला हैथामकर मशालों को हर जगह मलाला है

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आग और पानी

आँख से आँख मिलाती है आग से मगर पति की आँख का सामना वह नहीं कर पाती आँख झुका कर बैठती है वह पति के सामने उसका अन्नदाता जो है वह

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मेरा सन्नाटा

जब हम सेमल के फूल के बीच में सोए थे याद है ना तुम्हें तब पुकारा था तुमने तब काँटों वाले लाल गुलाब भी खिल उठे थेहम पानी पर चलते

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