कालरथी
यदि मैं पथ भूल जाऊँ या पथ को नहीं हो स्वीकार मेरा चलना वह बना ले अपने को अगम्य अथवा कर दे तुझे घोषित अपांक्तेय
यदि मैं पथ भूल जाऊँ या पथ को नहीं हो स्वीकार मेरा चलना वह बना ले अपने को अगम्य अथवा कर दे तुझे घोषित अपांक्तेय
जब हम अपनी हवस में ऊँचा और ऊँचा उठने के लिए हवा में घोल रहे होते हैं–- जहर तब वह दिन में नीलकंठ की तरह उसका विष चूस रहा होता है ताकि हम बचे रह सकें–- जहरीली हवाओं से
हाँ, कहा था तुमको– मेरा दर खुला है खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए तब मालूम नहीं था कि सप्तपदी में एक ऐसा भी विधान है जिसमें पाणिग्रहण से पहले वर-वधू से अपने-अपने पूर्व संबंधों को स्वाहा– कर कहा जाता है– ‘शुद्ध होने को!!’
आपस मे गूँथी दोनों हथेलियों को माथे पर रखकर जब गुजरते थे मुहल्ले की गली से तब निकल आते थे पंख उल्लास के और तन-मन दोनों हो जाते थे–- प्रफुल्लित।
कराहना रोक दो भाई कराहते रहने से बदलती नहीं है किस्मत किस्मत बदलने के लिए कसाई को खत्म कर देने तक की उठानी ही होती है हिम्मत
अंधी सुरंग हैयह जिंदगीकुओं और खाइयों से भरीचमगादड़ की चीखऔरमकड़ों के जालों से बुनीगधों की लीदऔरश्वानों के मूत से लिथड़ीबाघिन की गंध जैसी बदबूदारभेड़ियों जैसी हत्यारीकेंचुओं जैसी घिसटतीनालों की तरह…