कवि नहीं, मेहतर चाहिए
कवी नहीं मेहतर चाहिए Roses.Evening by Konstantin Korovin- WikiArt

कवि नहीं, मेहतर चाहिए

अगर वाकई सब कुछ ठीक-ठाक होता और सकुशल और हर चीज में दिखाई देता स्पंदन तो फिर क्यों होता जन्म कविता का इस संसार में?

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 प्रगति
प्रगति Murnau view with railway and castle by Wassily Kandinsky- WikiArt

प्रगति

ट्रेनें चला करती थीं देरी से लाइनें होती थीं सिंगल जब तक एक गाड़ी दूसरे स्टेशन पर पहुँच न जाती

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गिरवी दर गिरवी

स्मृतियों में बचपन की बारिश का दखल अब भी बचा बसा है इतना सघन बरजोर कि भीग जाता है जब तब उसकी नर्म गुदगुदी से सारा तन मन

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