प्रणय-पत्रिका
मैं प्रकृति-प्राकृत जनों का मान औ’ गुनगान करना चाहता हूँ। तुम उठे ऊँचे यहाँ तक स्वर्ग को ले
मैं प्रकृति-प्राकृत जनों का मान औ’ गुनगान करना चाहता हूँ। तुम उठे ऊँचे यहाँ तक स्वर्ग को ले
घिर आए घनश्याम गगन में भर आए मेरे लोचन हैं? अंतरिक्ष में बिखरे सहसाकिसके ये काले कुंतल हैं? नभ की सरिता में उग आए