मन में आया सवाल

फिर आया दूसरा सवाल या साहित्यकार बनाता साहित्य या इनसान बनाता साहित्य न कि साहित्य बनाता इनसान अगर साहित्य बनाता इनसान तो कुछ इनसान क्यों होते हैवान

और जानेमन में आया सवाल

राम के आदर्शों पर

राम के आदर्श पर चलना है तो प्रकृति विरोधी नहीं प्रकृति प्रेमी बनो राम के आदर्श पर चलना है तो मनुष्य प्रेमी ही नहीं पेड़-पौधे, पशु-पक्षी प्रेमी भी बनो राम के आदर्श पर चलना है

और जानेराम के आदर्शों पर

सपने में तोल्स्तोय से मुलाकात

अपने कुंभनदास को ही देख लो हिंदी संस्थानों से कहीं ज्यादा अपनी टुटही पनही को तवज्जो देते हुए मिल जाएँगेतो प्यारे, अभी नोबेल को छोड़ो मुझे जल्दी है अपनी पनही ठीक करानी है

और जानेसपने में तोल्स्तोय से मुलाकात

आस्तित्व खोजती स्त्रियाँ

बिना किसी शिकन बिना किसी उलझन के लगा कर बालों में करंज का तेल निकल पड़ती हैं, अहले-सुबह कंधे पर प्लास्टिक का थैला लटकाए खोजने कचरे के डब्बे में अपना…

और जानेआस्तित्व खोजती स्त्रियाँ

वसंत की आहट

मधुमालती के झूमते बेलों से आलिंगनबद्ध नागफनी को उखाड़कर रोप देती हूँ अपनेपन के कुछ पौधों को और, निकाल कर ले आती हूँ अपने उस स्वप्न को जिसे पिछले वसंत में सड़क के किनारे महुए के पेड़ के नीचे दबा कर छोड़ आई थी मैं जो आज भी गर्भस्थ शिशु की भाँति साँसें ले रहा है

और जानेवसंत की आहट