मधु-वितरण
ओ मधु-नयने! जागो-जागो अंत:शयने! ओ मधु-नयने! तजकर नीरवता की करवट स्वर को पर दो गोपन-वयने! ओ मधु-नयने!
ओ मधु-नयने! जागो-जागो अंत:शयने! ओ मधु-नयने! तजकर नीरवता की करवट स्वर को पर दो गोपन-वयने! ओ मधु-नयने!
बड़ी उम्मीद पर मैंने कदम अंगार पर डाले, बड़ी उम्मीद पर मैं पी गया हँस कर ज़हर-प्याले, दिशाएँ मोड़ लूँगा, मैं नयी दुनिया बना लूँगा
प्रिये, जब पवन सूने में तुम्हारी सुधि जगा जाता उसी क्षण घन उमड़ नभ में मुझे बेहद रुला जाता
निर्झरिणी, तेरी जल-धारा,ढोती मेरे सजग भाव को, तोड़ हृदय की कारा! पड़ा हुआ था, यथा सुप्त हो,बंदी था, पर आज मुक्त हो, विचर रहा, मकरंद-भुक्त हो, तेरा वह चिर-प्यारा।
दीपक मेरे मैं दीपों की सिंदूरी किरणों में डूबे दीपक मेरे मैं दीपों कीइनमें मेरा स्नेह भरा है इनमें मन का गीत ढरा है
भारति, भारत ने तिरंग से तेरा बंदनवार सँवारा, स्वागत में, मणिदीपोंवाला, धरती पर आकाश उतारा!