पंद्रह अगस्त
भारति, भारत ने तिरंग से तेरा बंदनवार सँवारा, स्वागत में, मणिदीपोंवाला, धरती पर आकाश उतारा!
भारति, भारत ने तिरंग से तेरा बंदनवार सँवारा, स्वागत में, मणिदीपोंवाला, धरती पर आकाश उतारा!
ओ पाषाण के पुजारी! तुम्हारा देवता पत्थर है। चिर-काल से तुम पत्थर को देवता मानकर
‘शिव’ यानी अच्छाई। अच्छाई एकबार जम करके, जड़ीभूत होकर एक खंभा बनी।
उठो साथियो ! निशीथ का अब हो चला विनाश और देखो व्योम में– रजनी कालिमा का अवशेष ! अब देख इधर– प्राची में रवि शोणित-सी-लाली लिए राष्ट्र के सोये हुए कुम्हलाए, शोषित-पीड़ित मानव को जगाने के लिए इस ओर संकेत करता आ रहा।