दृग मिले रहें, औ होते रहें बसेरे
दृग मिले रहें, औ होते रहें बसेरे बस इसी तरह तुम रहो सामने मेरे
दृग मिले रहें, औ होते रहें बसेरे बस इसी तरह तुम रहो सामने मेरे
मेरे नयनों की वीणा पर तुमने छेड़ा मल्हार रे पलकों के तारों पर मन के सातों स्वर मुखर हुए जाते,
नया लेखक क्या करे बिचारा? कोई है काँटों का रास्ता दिखाता
जो दिल ही समुंदर लहर भावना हो कहो चाँद मेरे! रुकें ज्वार कैसे? जो तैराक को ही हो तिनका बनाए
बड़े सवेरे रोज नींद से जब मैं आँख खोल जग जाती, नन्हीं चिड़िया एक सामने आ बातें करने लग जाती।