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कविता

Home » कविता » Page 82
 महात्मा गाँधी के प्रति

महात्मा गाँधी के प्रति

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1953
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

एक योद्धा-सा चला तू, संत बन कर मर गया । अग्नि-ज्वाला-सा उठा तू, फूल होकर झड़ गया ।

और जानेमहात्मा गाँधी के प्रति
 जीत लेकर क्या करूँगा?

जीत लेकर क्या करूँगा?

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1953
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

हार में जब तुम मिलोगे, जीत लेकर क्या करूँगा?

और जानेजीत लेकर क्या करूँगा?
 याद

याद

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1953
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

मेरी आँखों की पुतली से जो झाँक रही उन्मन छाया

और जानेयाद
 रात

रात

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1953
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

रात, जिसका चाँद मेरी नींद बन कर खो गया है, क्या न जाने हो गया है?

और जानेरात
 दृग मिले रहें, औ होते रहें बसेरे

दृग मिले रहें, औ होते रहें बसेरे

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1953
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

दृग मिले रहें, औ होते रहें बसेरे बस इसी तरह तुम रहो सामने मेरे

और जानेदृग मिले रहें, औ होते रहें बसेरे
 मेरे नयनों की वीणा पर

मेरे नयनों की वीणा पर

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1953
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

मेरे नयनों की वीणा पर तुमने छेड़ा मल्हार रे पलकों के तारों पर मन के सातों स्वर मुखर हुए जाते,

और जानेमेरे नयनों की वीणा पर
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