मैं जानता था
घर जिसने किसी गैर का आबाद किया है शिद्दत से आज दिल ने उसे याद किया हैजग सोच रहा था कि है वो मेरा तलबगार मैं जानता था उसने ही बरबाद किया हैतू ये ना सोच शीशा सदा सच है बोलता जो खुश करे वो आईना ईजाद किया है
राखी की चुनौती
बहिन आज फूली समाती न मन में तड़ित् आज फूली समाती न घन में, घटा है न फूली समाती गगन में लता आज फूली समाती न वन में।
ये घर तुम्हारा है
जो तुम न मानो मुझे अपना, हक तुम्हारा है यहाँ जो आ गया इक बार, बस हमारा हैकहाँ कहाँ के परिंदे, बसे हैं आ के यहाँ सभी का दर्द मेरा दर्द, बस खुदारा हैनदी की धार बहे आगे, मुड़ के न देखे न समझो इसको भँवर अब यही किनारा है
क्या पतझड़ आया है?
पत्तों ने ली अँगड़ाई है क्या पतझड़ आया है इक रंगोली बिखराई है क्या पतझड़ आया है?
डरे, सहमे, बेजान चेहरे
डूबे हैं गहरी सोच में भयभीत माँ, परेशान पिता अपने ही बच्चों में देखते हैं अपने ही संस्कारों की चिता।
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