तारों को जागते देखा है
हमने अपने मृदु सपनों को, अंबर में उगते देखा है भर-रात जगत के सिर्हाने, तारों को जगते देखा है
हमने अपने मृदु सपनों को, अंबर में उगते देखा है भर-रात जगत के सिर्हाने, तारों को जगते देखा है
बीत चुके इतने दिन जैसे पर कल की ही बात, नहीं मिटा पाया उस छवि को क्रूर समय का हाथ।
सब कहते हैं–गीत सुनाओ! मन को थोड़ा बहलाओ! यह न पूछता कोई तुमको क्या पीड़ा है बतलाओ?