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कविता

Home » कविता » Page 87
 बादल और वियोग

बादल और वियोग

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:October 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

बादल घिरे आकाश में, तुम हो न मेरे पास में; मेरे लिए दो-दो तरफ बरसात के सामान हैं।

और जानेबादल और वियोग
 बादल के टुकड़े

बादल के टुकड़े

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:October 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

रोमिल भेड़ों-से बादल के टुकड़े! कुछ उजले, कुछ काले।

और जानेबादल के टुकड़े
 दूर बहन का गाँव

दूर बहन का गाँव

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:October 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

गाँवों के जन बड़े प्रेम से झूम-झूमकर कभी-कभी यों गा उठते हैं...

और जानेदूर बहन का गाँव
 बरसात

बरसात

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:October 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

काले काले मेघ तुम्हारे–बिजली की ज्वाला मेरी यह मादक बरसात तुम्हारी–लपटों की माला मेरी

और जानेबरसात
 ज्ञानी जाग बैठा है

ज्ञानी जाग बैठा है

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:October 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

संसार का सबसे बड़ा ज्ञानी जगा बैठा है और, टेलिप्रिंटर पर अक्षर उगे जा रहे हैं।

और जानेज्ञानी जाग बैठा है
 आई सरस बरसात वाली

आई सरस बरसात वाली

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:October 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

जलन की ग्रीष्म गई, आई सरस बरसात वाली!

और जानेआई सरस बरसात वाली
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