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कविता

Home » कविता » Page 88
 सच कहता हूँ

सच कहता हूँ

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:September 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

तुम्हारी याद के उल्लास से मैं गीत रचता हूँ

और जानेसच कहता हूँ
 भागो मत, दुनिया को बदलो!

भागो मत, दुनिया को बदलो!

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:September 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

मानव ही तो इस दुनिया का इतिहास बदलता आया है

और जानेभागो मत, दुनिया को बदलो!
 आत्म-चेतना

आत्म-चेतना

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:September 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

कुछ भीख माँगने के पहले ओ दानी। रुककर अपनी जेबों को जरा टटोलो।

और जानेआत्म-चेतना
 तुम आईं

तुम आईं

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:September 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

तुम आईं बज उठी हमारी वंशी प्राणों के मृदु स्वर में!

और जानेतुम आईं
 ओ बालिके कला की!

ओ बालिके कला की!

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:September 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

मिट्टी का आँगन, मिट्टी का घर, मिट्टी की चाकी मिट्टी सनी कर्मरत करतलियाँ मेहदी से आँकी

और जानेओ बालिके कला की!
 जीवन का व्यापार

जीवन का व्यापार

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:September 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

बीत गए जो दिन, उनका है आँसू ही आभार! सखि, यह जीवन का व्यापार!

और जानेजीवन का व्यापार
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