जय वसुंधरे!
यह धरती अधिवास युगों से यही हमारी परिजन फूले-फले कि जैसे मधुवन क्यारी
प्रबोध
जागो निद्रा-तंद्रा के कर बिके हुए बेमोल! उड़ी सुरभि सब ओर भोर के सरसिज-संपुट खोल!!
यह धरती अधिवास युगों से यही हमारी परिजन फूले-फले कि जैसे मधुवन क्यारी
जागो निद्रा-तंद्रा के कर बिके हुए बेमोल! उड़ी सुरभि सब ओर भोर के सरसिज-संपुट खोल!!