प्रबोध
जागो निद्रा-तंद्रा के कर बिके हुए बेमोल! उड़ी सुरभि सब ओर भोर के सरसिज-संपुट खोल!!
कुछ रात गए, कुछ रात रहे
कुछ रात गए, कुछ रात रहे जब सहसा नींद उचट जाती
जागो निद्रा-तंद्रा के कर बिके हुए बेमोल! उड़ी सुरभि सब ओर भोर के सरसिज-संपुट खोल!!
कुछ रात गए, कुछ रात रहे जब सहसा नींद उचट जाती