अपने अपने यथार्थ

देखते हो खूँटी पर टँगा वह मैला कुरताउसकी बाजू पर लगी हुई कई पैबंदमेरे पायजामे पर पड़ी बेतरतीब सिलवटें झुर्रियों से ग्लोब बने

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शहर में घर बसाना

हवा बदबू, धुआँ, सीलन से भरी है शोर से सहमी समय की बाँसुरी है तिर रहा हर होंठ पर फिल्मी तरानानहीं रिश्तों की गरम-कनकन छुअन है

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गमलों में कल्पनाएँ

कल्पना यथार्थ से भी अधिक कठोर होती हैं  इसे कोमल उँगलियों से भी  स्पर्श मत करो   शरमा जाती है यह छुईमुई की तरह

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