वापसी
कविता सीधे रास्ते नहीं चलती…. कविता राजमार्गों को छोड़, राहमापी करती है गलियों, पगडंडियों धूलभरी बस्तियों की। कविता पसीने की गंध में मिलाती है गर्म रोटी की महक।
कविता सीधे रास्ते नहीं चलती…. कविता राजमार्गों को छोड़, राहमापी करती है गलियों, पगडंडियों धूलभरी बस्तियों की। कविता पसीने की गंध में मिलाती है गर्म रोटी की महक।
कविता पसीने की गंध में मिलाती है गर्म रोटी की महक। कविता चूल्हे पर उठती भाप से मापती है भूख का तापमान। कविता घृणा की परतों को उधेड़ प्रेम पर अपनी मुहर लगाती है
वापसी की यात्रा उम्मीदों से भरी होती है प्रकाश, प्रेम और ‘थकान से मुक्ति’ के जश्न की कामना लिए वापसी की यात्रा हमेशा छोटी होती है गमन की यात्रा से।
नौकुछिया ताल में मैंने पैरों को पानी में डाला कौन से ताल में पहले में या दूसरे में या नौवें ताल में जिसमें भी मैंने डाले पैर नौ
उसके पास मेरी ख़ताओं की लंबी फ़ेहरिस्त है बेहिसाब उलाहनों के ग्रंथ उसके पास जाते ही हो जाती हैं मेरी ढालें नाकाम उसके सामने पस्त पड़ी हैं मेरी शमशीरें मुश्क़िल है उसे यक़ीन दिलाना कि मैं उसे चाहता हूँ
दिशाएँ जब छोड़ देंगी इशारा करना मेरा दृढ़ मनोरथ भाँप छोड़ देंगे कुत्ते और चमचे वफ़ादारी छोड़ देगी गौरैया मेरे आँगन में फुदकना मैं तुम्हें पुकारूँगा अपनी पूरी कातरता के साथ फिलहाल अभी मैं तुम्हें ललकारता हूँ