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कविता

Home » कविता » Page 95
 उलझी त्रिज्याएँ

उलझी त्रिज्याएँ

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

इस वृत्त की केंद्रस्थ भूमि डोल गई– सारी त्रिज्याएँ उलझ गई हैं ;

और जानेउलझी त्रिज्याएँ
 सूरज की करनी

सूरज की करनी

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

शाम के धुँधलके में शर्माया-सा सूरज रात से मिला था ;

और जानेसूरज की करनी
 सशब्द न हो पाये :

सशब्द न हो पाये :

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

गत वर्ष की ही भाँति इस वर्ष भी

और जानेसशब्द न हो पाये :
 रात पिया

रात पिया

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

चाँद– बड़ा जुलुम किया, रात पिया!

और जानेरात पिया
 कबतक?

कबतक?

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:May 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

कब तक यह आँख मिचौनी रे! कब तक यह आँख मिचौनी?

और जानेकबतक?
 भूल जाने दे

भूल जाने दे

  • Post author:abhiranjan.priyadarshi
  • Post published:May 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

भूल जाने दे मुझे अपनी समूची कल्पना बादलों का घूँट पी पीकर बनी जो चाँदनी भूल जाने दे परागी तारिकाओं की विभा

और जानेभूल जाने दे
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