प्रबोध
जागो निद्रा-तंद्रा के कर बिके हुए बेमोल! उड़ी सुरभि सब ओर भोर के सरसिज-संपुट खोल!!
जागो निद्रा-तंद्रा के कर बिके हुए बेमोल! उड़ी सुरभि सब ओर भोर के सरसिज-संपुट खोल!!
कुछ रात गए, कुछ रात रहे जब सहसा नींद उचट जाती
जगती, तेरे सभी हम, जननी, तेरी जय है; विश्वराज्य के लोकतंत्र में किसको किसका भय है?