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कविता

Home » कविता » Page 95
 प्रबोध

प्रबोध

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:August 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

जागो निद्रा-तंद्रा के कर बिके हुए बेमोल! उड़ी सुरभि सब ओर भोर के सरसिज-संपुट खोल!!

और जानेप्रबोध
 किरण और कुटीर

किरण और कुटीर

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:August 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

सारे जीवन की कलाराधना मेरी, विज्ञान, ज्ञान का सब तन्मय अन्वेषण

और जानेकिरण और कुटीर
 कुछ रात गए, कुछ रात रहे

कुछ रात गए, कुछ रात रहे

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

कुछ रात गए, कुछ रात रहे जब सहसा नींद उचट जाती

और जानेकुछ रात गए, कुछ रात रहे
 नत-मस्तक हूँ

नत-मस्तक हूँ

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

नत-मस्तक हूँ, पद-नख धर दो।

और जानेनत-मस्तक हूँ
 वृद्धत्व

वृद्धत्व

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

कौन कहता है कि तुम वृद्धत्व मेरे पास आए!

और जानेवृद्धत्व
 विश्वराज्य

विश्वराज्य

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1951
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

जगती, तेरे सभी हम, जननी, तेरी जय है; विश्वराज्य के लोकतंत्र में किसको किसका भय है?

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