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कविता

Home » कविता » Page 96
 ठाकुरोपनिषद्

ठाकुरोपनिषद्

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

तुम्हारे नयन-रथ में ही सूर्य सवार हो कर भ्रमण करेंगे : जगत-पहिया खोजने के लिए ।

और जानेठाकुरोपनिषद्
 एक प्रश्न ?

एक प्रश्न ?

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

प्राण ! पलकों में थिरकती प्रीत सी प्रिय प्रवासी के अधर के गीत सी

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 मृगजल

मृगजल

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

आज तो कुछ भी नहीं है याद ! जिंदगी किस स्वप्न के कारण

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 धरती का धूसर रंग

धरती का धूसर रंग

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

आज की अनमनी-सी साँझ, हवा यों नहीं थी

और जानेधरती का धूसर रंग
 स्वागत में

स्वागत में

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

देश-काल-स्वागत में ऋतुओं का दीपक समंदर-सा खारा है बाती का अंतरीप न्यारा है

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 फूल बटन-होल का

फूल बटन-होल का

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

फूल बटन-होल का– एंटिक पेपर पर एक पीठ छपा हुआ टी.बी. का नुस्खा या ऐटम का चित्र नहीं,

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