लोहे के पेड़ हरे होंगे!
लोहे के पेड़ हरे होंगे, तू गान प्रेम का गाता चल
मुझे लौटकर जाने दो
मुझको वापिस बुला रहे हैं, मुझे लौट कर जाने दो! एकबार फिर बीते सपनों से संसार सजाने दो!
पिंजरे का पंछी
हमारे ‘द्विज’ बिहार में कविता की नई धारा के अग्रदूतों में रहे हैं। किंतु, उनकी रचनाओं से इधर हिंदी-संसार सर्वथा वंचित रहा है। क्यों?