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कविता

Home » कविता » Page 97
 बुभुक्षा

बुभुक्षा

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

जहाज की रेलिंग पर मेरा ऑवर कोट है

और जानेबुभुक्षा
 साँझ

साँझ

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:April 1, 1964
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

साँझ तम के साथ अनजानी दिशाओं से उतर कर पास मेरे छा रही है

और जानेसाँझ
 प्रणय-पत्रिका

प्रणय-पत्रिका

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:January 1, 1954
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

मैं प्रकृति-प्राकृत जनों का मान औ’ गुनगान करना चाहता हूँ। तुम उठे ऊँचे यहाँ तक स्वर्ग को ले

और जानेप्रणय-पत्रिका
 मधुमयी

मधुमयी

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:January 1, 1954
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

(सजला) तुमने किसकी ओर उठाईं अँखियाँ काजलवाली, री!

और जानेमधुमयी
 अपराजित

अपराजित

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:January 1, 1954
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

मिटने वाली सुनी है क्या कहानी? हो नहीं सकती पराजित युग-जवानी!

और जानेअपराजित
 कवि जी

कवि जी

  • Post author:sanjay.panday
  • Post published:January 1, 1954
  • Post category:काव्य धारा
  • Post comments:0 Comments

लहराते कवि जी! फहराते कवि जी!

और जानेकवि जी
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