वर्षा-मंगल
घिर आए घनश्याम गगन में भर आए मेरे लोचन हैं? अंतरिक्ष में बिखरे सहसाकिसके ये काले कुंतल हैं? नभ की सरिता में उग आए
मधु-वितरण
ओ मधु-नयने! जागो-जागो अंत:शयने! ओ मधु-नयने! तजकर नीरवता की करवट स्वर को पर दो गोपन-वयने! ओ मधु-नयने!
प्यार के सपने
बड़ी उम्मीद पर मैंने कदम अंगार पर डाले, बड़ी उम्मीद पर मैं पी गया हँस कर ज़हर-प्याले, दिशाएँ मोड़ लूँगा, मैं नयी दुनिया बना लूँगा
मोह-बंधन
प्रिये, जब पवन सूने में तुम्हारी सुधि जगा जाता उसी क्षण घन उमड़ नभ में मुझे बेहद रुला जाता
निर्झरिणी
निर्झरिणी, तेरी जल-धारा,ढोती मेरे सजग भाव को, तोड़ हृदय की कारा! पड़ा हुआ था, यथा सुप्त हो,बंदी था, पर आज मुक्त हो, विचर रहा, मकरंद-भुक्त हो, तेरा वह चिर-प्यारा।
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