समझौता
शिक्षिका ने भी कुछ सिक्के कंडक्टर की हथेली पर रख दिये जिसे गिने वगैर ही पॉकेट में डालकर वह आगे बढ़ गया। कंडक्टर को बेफिक्र आगे बढ़ते देख मैंने शिक्षिका को टोका–‘बहन जी, आपने टिकट क्यों नहीं माँगा?’ वह मुस्कुराई। बोली–‘टिकट माँगूँगी तो दस रुपये देने होंगे...वैसे पाँच रुपये में काम चल जाता है।’