कपों की कहानी
मैं रसोई में जाकर उत्साह से चाय बनाने में जुट गया और भगोने में चाय का सामान डालकर, मैंने तीन कप निकाले। एक बड़ा और दो छोटे। फिर सोचा...
मैं रसोई में जाकर उत्साह से चाय बनाने में जुट गया और भगोने में चाय का सामान डालकर, मैंने तीन कप निकाले। एक बड़ा और दो छोटे। फिर सोचा...
आज भी सुबह आठ बजे से राहगीरों को ताकते हुए ग्यारह बजे चले थे। मजदूरी को तलाशती उसकी आँखों में मजबूरी पानी बनकर उभर आई थी।
‘बाबूजी, आपकी शादी का तोहफा तो मैं आपके सामने हूँ...’ उसने वातावरण को सरल बनाना चाहा।
ज्यों-ज्यों वह लड़की बड़ी होने लगी, त्यों-त्यों परिवार में एक बेफिक्री का आलम नजर आ रहा था। फिर भी, ऐसा क्या था जिस पर लड़की के बड़ी होने पर गाँववाले खुशियों से भरे-भरे थे।
एक बड़ी दुविधा में फँसा था वह। फिलहाल, नोटिस की अवहेलना करना उसका इरादा नहीं है...घड़ी से बढ़कर उनकी इज्जत दाँव पर लगी थी, उसने सोचा, और त्वरित ही घड़ी का भुगतान करने में ही उसकी भलाई है।
एक सवाल अकेले में अंदर ही अंदर मथे जा रहा था और फिर अल्पकाल में भीतर ही भीतर कहीं से एक आवाज जेहन में टकराई, ‘वस्तुतः तुम्हारी मत ही मारी गई है... क्या गरूर करना नौकरी-पद-स्टेट्स का...आखिर, इस नश्वर-नाशवान काया का गुमान काहे का...’