हिस्से का धर्म

साल भर में ही बकरी का बच्चा खा-पीकर काफी मोटा और तगड़ा हो गया था। त्योहार के मौके पर माँ-बेटे साथ मिलकर उसे बेचने बाजार जा रहे थे। बकरी के बच्चे के गले में बँधी रस्सी को खींचता हुआ बेटा आगे चल रहा था और माँ पीछे।

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उपाय

कहीं से घूमते हुए गाँव में पधारे महात्मा को अपने घर पर बुलाकर सुस्वादु भोजन कराते हुए एक युवक ने अनुनय किया–‘बाबा जी कुछ ऐसा उपाय बताओ कि मैं इस बार इम्तहान में पास कर जाऊँ और जल्दी ही कोई अच्छी नौकरी लग जाए...।’ महात्मा ने आँखें मूँदकर कुछ पल सोचा फिर कहा–‘खूब मेहनत से पढ़ो...समय को पहचानो।’

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माँ

नदी में नहाने के क्रम में दस-ग्यारह साल का एक लड़का भूल से अधिक गहराई में चला गया और डूबने लगा। किनारे खड़े लोगों ने शोर मचाया–‘अरे देखो वो लड़का डूब रहा है कोई बचाओ...।’ ‘अरे! हाँ भाई जल्दी कोई उपाय करो वरना डूब जाएगा...।’ दूसरे व्यक्ति ने पहले की बात को कुछ और लोगों तक पहुँचाया। तभी किसी और इधर-उधर देखकर जोर से बोला–‘अरे! अभी तो उसकी माँ यहीं थी, कहाँ गई, बुलाओ उसे...।’

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चोर

कुत्ते की सेहत में साहब को कुछ ढीलापन का एहसास हुआ तो मन में पंद्रह वर्षीय नौकर कृष्णा के प्रति संदेह का बीज अंकुरित हो उठा। तत्काल ही कृष्णा को पास बुलाकर उसने डाँटते हुए पूछा–‘क्यों रे कृष्णा, कुछ दिनों से टॉमी कमजोर दिखने लगा है...क्या कारण है?’ स...साब मैं...मैं तो टॉमी की देखभाल खूब मन लगाकर किया करता हूँ...समय पर खाना खिलाता हूँ...नहलाता हूँ, और टहलाने भी ले जाता हूँ...।

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जिंदगी

नगर के चौराहे पर कूड़े-कर्कट की ढेर को कुरेद-कूरेदकर दस-ग्यारह साल की एक लड़की अपने बोरे में प्लास्टिक के बोतल, टीन, शीशा आदि भरती जा रही थी। वह अपने काम में पूरी तरह तल्लीन थी। उसके चेहरे पर उलझे भूरे बालों का गुच्छा लटक रहा था।

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समझौता

शिक्षिका ने भी कुछ सिक्के कंडक्टर की हथेली पर रख दिये जिसे गिने वगैर ही पॉकेट में डालकर वह आगे बढ़ गया। कंडक्टर को बेफिक्र आगे बढ़ते देख मैंने शिक्षिका को टोका–‘बहन जी, आपने टिकट क्यों नहीं माँगा?’ वह मुस्कुराई। बोली–‘टिकट माँगूँगी तो दस रुपये देने होंगे...वैसे पाँच रुपये में काम चल जाता है।’

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