झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई

बुंदेले हरबोलों ने मरकर भी अमर रानी को कुछ इस तरह याद किया–खुबई लरी मरदानी/अरे भई झाँसी वाली रानी।

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कविताओं में बालक

आज का बच्चा समस्याओं से जूझ रहा है। टूटते संयुक्त परिवारों ने बच्चों के सामने अनगिनत प्रश्न खड़े कर दिए हैं।

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अज्ञेय के उपन्यासों में संस्कृती विमर्श

व्यक्ति के पास वरण की स्वतंत्रता नहीं होती। न तो वह अपने मुताबिक जीवन चुन सकता है और न ही मृत्यु। सेल्मा मृत्यु के करीब है, लेकिन फिर भी जीवन से भरी हुई है। जबकि योके युवती है,

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रेणुु की कहानियों में लोकभाषा

फणीश्वरनाथ रेणु का कथा-साहित्य लोक-जीवन की भीत्ति पर निर्मित है। लोक-जीवन का विविध रूप इनकी कहानियों में अभिव्यक्त हुआ है।

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रेणु और दिनकर

उदीयमान कवि आलोक धन्वा का विचार है कि बिहार में दिनकर-दग्ध लोग काफी हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो रेणु से दग्ध हैं।

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जन से जुड़ी कविताओं का वह दौर

कवियों को रात-रात भर लोग सुनते थे। शायद ये अच्छा भी था और बुरा भी। जब पूरी रात कोई कवि बैठा रहेगा और लगातार कविताएँ सुनाएगा तो वह लोगों की आदत भी खराब करेगा।

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