रेणु की कहानियों में द्वंद्व

ऐसा भारतवर्ष हमने चाहा था क्या? ऐसा लगता है, कहीं पतवार खो गई है। ...यह भी कोई प्रजातंत्र है? कलमबंद, जुबान बंद। पर आँखें खुलीं।

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सन् 1857 और ‘देश की बात’

देउस्कर का कहना है कि–अँग्रेज कहते हैं, हम तुमलोग को सभ्यता सिखा रहे हैं। हम भी समझते हैं, ‘अँग्रेजों के सहवास से हम सभ्य हो रहे हैं।’ इस पहेली की मीमांसा करते समय सर टॉमस मनरो ने कहा है–भारतवासियों को सभ्य बनाने की बात का मतलब ही मैं अच्छी तरह समझ नहीं सका हूँ।

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रेणु की सामो आमाँ

रेणु के व्यक्तित्व का निर्माण इसी सानो आमाँ के अंचल में हुआ। कोइराला-निवास में रहते हुए और आदर्श विद्यालय में पढ़ते हुए

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हिंदी कहानी में श्रमिक जीवन

सामाजिक-आर्थिक अंतर व्यक्ति और समुदायों में श्रेष्ठता और न्यूनता ग्रंथि को विकसित करता है यही भारतीय समाज के साथ भी हुआ।

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हिंदी बाल साहित्य परंपरा, प्रगति और प्रयोग

बाल साहित्य बच्चों में उन गुणों का बीजारोपण करता है जो भविष्य में चरित्रवान तथा नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हैं।

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‘पाटलिपुत्र’ निर्भीक पत्रकारिता की बानगी

काशी प्रसाद जायसवाल के संपादन में पटना से 1914 में शुरू हुआ ‘पाटलिपुत्र’ ने 7 वर्षों तक स्वतंत्रता की लौ जगाई।

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