सांस्कृतिक वर्चस्ववाद

भारत को ब्रिटिश औपनिवेशिक तंत्र की गुलामी से मुक्ति की घोषणा के बाद इसका सामाजिक-राजनैतिक एवं धार्मिक स्वरूप क्या हो या कैसा हो, इस पर राष्ट्र निर्माता एवं युग-द्रष्टा बाबा…

और जानेसांस्कृतिक वर्चस्ववाद
 कार्यक्षेत्र में नौकरीपेशा नारी
नौकरीपेशा महिलाएँ और महिला सशक्तिकरण

कार्यक्षेत्र में नौकरीपेशा नारी

नारी का नौकरीपेशा होना आज के युग की जरूरत भी है और सच्चाई भी। भौतिकतावाद के बढ़ते दायरे ने जहाँ हमारी जरूरतें बढ़ाई हैं, वहीं अधिक सुख-सुविधा की चाह एवं स्वतंत्रता-समानता के बढ़ते आयामों ने स्त्री-पुरुष के बीच की सदियों पुरानी मान्यताओं और दूरियों को ध्वस्त भी किया है। आज की नारी पुरुषों के समकक्ष जीवन के हर पहलू पर खड़ी है। समता, स्वतंत्रता उसके मूलभूत अधिकार बन गए हैं।

और जानेकार्यक्षेत्र में नौकरीपेशा नारी

मैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में स्त्री विमर्श

इन दिनों हमारे घर में एक नया मुहावरा निर्मित हुआ है–‘मैत्रेयी का जाग जाना’। जब भी मैं किसी बात का विरोध करती हूँ तो घरवाले कहते हैं, “इसके अंदर की मैत्रेयी जाग गई।”

और जानेमैत्रेयी पुष्पा के उपन्यासों में स्त्री विमर्श

एक ऐसी भी निर्भया : एक स्त्री की शोषण गाथा

‘एक ऐसी भी निर्भया’ उपन्यास नारी जीवन के दर्दनाक चित्र का अक्षर रूप है। लेखिका अपने सहज रूप में सामाजिक विसंगतियों के प्रति आक्रोश जाहिर करनेवाली और पीड़ित, शोषित नारी के प्रति संवेदनशील एवं मानवीय मूल्यों के प्रति निष्ठा रखनेवाली हैं।

और जानेएक ऐसी भी निर्भया : एक स्त्री की शोषण गाथा

भींगी हुई लड़की : स्त्री विमर्श का अभिनव प्रयोग

हिंदी उपन्यास ने अपने जीवन के 146 साल पूरे कर लिये। 1870 में रचित पं. गौरीदत्त के पहले उपन्यास ‘देवरानी जेठानी की कहानी’ से लेकर 2016 में लिखित-प्रकाशित डॉ. मधुकर गंगाधर के उपन्यास ‘भींगी हुई लड़की’ के बीच हिंदी उपन्यास को कई पड़ावों से होकर गुजरना

और जानेभींगी हुई लड़की : स्त्री विमर्श का अभिनव प्रयोग

स्त्री सशक्तिकरण : दशा, दिशा एवं संभावनाएँ

विकास के लिए महिलाओं के सशक्तिकरण से अधिक प्रभावी तरीका कुछ नहीं है। इस बयान से अधिक सटीक तरीके से महिलाओं की क्षमता का परिचय और कोई नहीं हो सकता।

और जानेस्त्री सशक्तिकरण : दशा, दिशा एवं संभावनाएँ