बिन चर्चित उपखान
बिन चर्चित कहानियों में एक आपातकाल के दिन में लिखी गई है–‘मंगलगाथा’। आपातकाल में मंगलगाथा? क्या आपातकाल मंगल के लिए ही आया था? आपातकाल से किस ओर संकेत है?
बिन चर्चित कहानियों में एक आपातकाल के दिन में लिखी गई है–‘मंगलगाथा’। आपातकाल में मंगलगाथा? क्या आपातकाल मंगल के लिए ही आया था? आपातकाल से किस ओर संकेत है?
निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि कबीर और नागार्जुन दोनों हिंदी के उन विरले कवियों में से हैं जिन्होंने अपने रचनाशीलता के विविध आयाम द्वारा सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, शोषण पर जबरदस्त प्रहार किया है। समतामूलक समाज की स्थापना तथा व्यंग्य की तीखी मार जैसी समानता के गुणों के कारण ही कबीर और नागार्जुन के अध्ययन को एक साथ प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है। डॉ. परमानन्द श्रीवास्तव के अनुसार–‘हिंदी में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी पहले आलोचक हैं, जिन्होंने कबीर के मर्म को ठीक-ठीक समझा और कबीर के भीतर से ही एक नये कबीर की खोज की। कहें कि उन्होंने कबीर का अपना एक नया पाठ निर्मित किया।’
कहानी एक गरीब लड़के के आत्मवृत्त के रूप में है, जिसमें वह कहता है : ‘आजकल तो मैं ही घर में कमाने वाला हूँ। दिन के समय लड़कों के साथ कोसी में मछलियाँ मारता हूँ। शाम होते ही किसी की फुलवारी में घुसकर कुछ फल और सब्जी का जुगाड़ करता हूँ। इसी से घर चलता है। उस दिन भूखन साहू के यहाँ एक बैलगाड़ी खड़ी थी। उसमें चावल के बोरे लदे थे। अपने साथियों के साथ मिलकर हमने एक पूरा बोरा उड़ा लिया और गाड़ीवान को खबर तक न हुई।
अपने राजनीतिक जीवन में ऐसी सैकड़ों जनसभाओं में उन्हें बेशुमार ढंग से भाषण करते हुए लोगों ने सुना था। कई बार ऐसे भी वाकिये हुए हैं, जब उन्हें उन्नाव और लखनऊ की चुनाव सभाओं में सिर्फ मंच पर बैठे हुए लोग ही सुन रहे होते थे, पर मुद्रा जी पर कोई फर्क नहीं पड़ता था। वे अपनी चिरपरिचित मुद्राओं के साथ जनजागरण अभियान में लगे रहे।
अपनी बेगम की बेवफाई का बादशाह शहरयार के दिल पर गहरा असर पड़ा और उनका औरत जात पर से ही भरोसा उठ गया।
भारतीय संस्कृति के किन मूल्यों में उसका सामर्थ्य निहित है और कौन-सी प्रवृत्तियाँ उसे वह बल और गतिशीलता दे सकती है, जिसकी उस पश्चिमी संस्कृति का मुकाबला करने के लिए आवश्यकता होगी, यह प्रश्न भी हमारे सामने है।