बँधे बँधाए साँचे को तोड़ती कहानियाँ
तेजेंद्र की कहानियों में सभ्यताओं का द्वंद्व है, समाज का वह विद्रूप चेहरा है जिसे पूँजीवाद रह-रहकर बेनकाब करता चलता है। तेजेंद्र जी की भाषा में एक तरह का ‘इन्हेरेंट विट’ है जो कहानियों में एक खास किस्म की रवानी पैदा करता है और हिंदी उर्दू की साझी परंपरा की किस्सागोई की विरासत की याद दिलाता है। तेजेंद्र शर्मा की रेंज बहुत बड़ी है। उनके समकालीन कई कथाकार एक ही कहानी को बार बार लिखकर राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय होने का दंभ भरते रहे जबकि यह लेखक समाज की अलग अलग विडंबनाओं को अपनी कथाओं के माध्यम से समझते रहे।