श्यौराज सिंह ‘बेचैन’ दलन मुक्ति के लेखक

प्रो. श्यौराज सिंह ‘बेचैन’ का जीवन संघर्ष प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए अनुकरणीय है जो संघर्ष करते हुए तमाम झंझावातों से टकराते हुए

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कोशकार अरविंद कुमार

अरविंद कुमार हिंदी की विभिन्न बोलियों के शब्दों की ऐसी झड़ी लगा देते थे मानो मशीनगन से गोलियाँ छूट रही हों।

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स्त्रियाँ भी लिखें पुरुषों की कथा

यह एक संयोग ही रहा होगा कि जिन दो अनूदित किताबों को एक साथ पढ़ा, उनके लेखक फोर्ड फाउंडेशन की अनुदान राशि को स्वीकारने-अस्वीकारने के विवाद को लेकर चर्चा में रहे, खासकर महाश्वेता देवी। इससे भारतीय मनीषा की एक विशेषता उजागर हुई है कि नोबेल पुरस्कार को सार्त्र यदि आलू की बोरी कहकर ठुकरा सकते हैं तो दलित-शोषित आदिवासियों की जिंदगी को अपनी कलम का आधार बनाने वाली कथाकार महाश्वेता देवी भी फोर्ड फाउंडेशन के अनुदान प्रस्ताव को उससे बेहतर कारण देकर ठुकरा सकती हैं : ‘जो धन मैंने उपार्जित नहीं किया, उस पर मेरा कोई अधिकार नहीं।

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भारत और भारतीयता पर विचार

शिक्षा, भाषा, अलगाववाद, आतंकवाद, सुरक्षा, वैचारिक विभ्रम विचारदारिद्रय, सत्तालोलुपता के कारण तुष्टिकरण, ग्रामों का पतन नगरों का असंतुलित विकास–ये सारे विषय इस संकलन के केंद्र में हैं। सर्वप्रथम प्रो. ब्रजबिहारी कुमार ने भारत के बौद्धिक परिवेश पर विचार किया है कि भारत का बुद्धिजीवी अपने में सिमट गया है। उसे यह नहीं दिख रहा है कि प्रजाति एवं भाषा के नाम पर भारत को तोड़ने का भीषण षड्यंत्र अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चल रहा है।

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वीरेंद्र जैन के उपन्यासों में पारिस्थितिकी चिंतन

माधव गाड्गिल कमिटी रपट को केंद्र हरित टैब्यूनल ने नकार दिया। कुछ महीनों तक माधव गाड्गिल कमिटी रपट और कस्तूरी रंगन कमिटी रपट का बोलबाला था। पारिस्थितिकी से संबंधित अब तक आये रपटों में ये दो ही सबसे चर्चित एवं विवादास्पद हैं।

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शंकर शेष के नाटकों में परंपरा और आधुनिकता

अंततः हम कह सकते हैं कि डॉ. शेष ने जिन महाभारतकालीन स्त्री पुरुषों के बारे में बताया है वह परंपरागत होकर भी आधुनिकता से समन्वित है।

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