सूर्यबाला: बर्फ पिघलाती हुई आत्मीयता की आँच

प्रसिद्ध लेखिका सूर्यबाला की सद्य प्रकाशित पुस्तक ‘अलविदा अन्ना’ उनके अमेरिका प्रवास से जुड़े अनुभवों और अनुभूतियों का सुंदर आख्यान है। अंतर-बाहर की इस यात्रा के दौरान, हर छोटी-बड़ी चीजों को जाँचने-परखने की लेखिका की सजग दृष्टि और उतने ही जीवंत चित्रण से, पाठक अनायास ही इस यात्रा से जुड़ जाता है। ‘अलविदा अन्ना’ के माध्यम से लेखिका ने समय और भौगोलिक सीमाओं से परे, अलग-अलग भाव-विश्वों की एक अत्यंत दुरुह, अनिश्चित मगर निर्णायक यात्रा का दस्तावेज प्रस्तुत किया है।

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 बर्बर सभ्यता का जवाब प्रकृति की पूजा
Chains of the Caucasus Mountains by Ivan Aivazovsky- WikiArt

बर्बर सभ्यता का जवाब प्रकृति की पूजा

राष्ट्रकवि दिनकर जी एवं नेहरु जी एक बार साथ एक मंच की ओर जा रहे थे। चलते हुए नेहरु जी के पाँवों में ठोकर सी लगी। वे लड़खड़ाये ही थे कि दिनकर जी ने तत्काल उन्हें सँभाल लिया। नेहरु जी के धन्यवाद देने पर दिनकर जी मुस्कुरा कर बोले–‘यह कोई बड़ी बात नहीं...जब सत्ता के कदम डगमगाते हैं, साहित्य ही उसे सँभालता आया है।’

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‘होना’ और ‘रहना’ के साहित्यिक संदर्भ

अच्छा हुआ मुक्तिबोध कवि सम्मेलन मंचों पर अधिक नहीं आए। उन्हें कविताएँ आसान करनी पड़तीं और यदि ऐसी, समझ में आने वाली यही कविता भी सुनाते, तो काट दिए जाते, साहित्य से, पाठ्यक्रमों से, संगोष्ठियों से। ये कवि नहीं हैं, ये मंच का है, इसको हमारे साथ होने का अधिकार नहीं है। अच्छी बात ये है कि अच्छी चीजें सदा रहती हैं, आगे भी रहेंगी।

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कथाकार राधाकृष्ण की पत्रकारिता

कभी संपादक के रूप में, कभी अतिथि सम्पादन के रूप में, कभी संपादकीय सहयोगी के रूप में, कभी प्रूफरीडर के रूप में, कभी लेखक के रूप में राधाकृष्ण ने पत्रकारिता के अनुभव एकत्र किये। उनके इन्हीं अनुभवों का सार-संक्षेप उनके व्यंग्य उपन्यास ‘सनसनाते सपने’ में वहाँ हैं, जहाँ राधाकृष्ण ने  प्रेस और पत्रकारिता के यथार्थ का यथार्थ प्रस्तुत किया है।

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पूर्वोत्तर भारत : भाषा, साहित्य और हिंदी

पूर्वोत्तर भारत में तिब्बती-चीनी परिवार, आग्नेय परिवार और भारतीय आर्यभाषा परिवार–इन तीन भाषा-परिवारों की सैकड़ों भाषाएँ प्रचलित हैं। इनमें, संख्यात्मक दृष्टि से तिब्बती-चीनी भाषा-परिवार के तिब्बती-बर्मी उपपरिवार की भाषाओं का आधिक्य है। मात्र आधुनिक साहित्यिक भावबोध के विकास की दृष्टि से इनके तीन वर्ग किये जा सकते हैं–विकसित भाषाएँ (मणिपुर, बोड़ो), विकासशील भाषाएँ (गारो, त्रिपुरी, कार्बी, न्यीसी, आदी, लुशेइ, आओ, अंगामी, लोथा, सेमा) और अविकसित (अथवा अन्य) भाषाएँ। तीसरे वर्ग की भाषाओं की संख्या अधिक है।

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कवि पंत की काव्य-साधना

आधुनिक हिंदी कविता के इतिहास में कोमल प्राण कवि सुमित्रानंदन पंत की देन किसी भी दूसरे बड़े कवि से कम महत्त्वपूर्ण नहीं।

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