चतुर्विध तपस्या और चतुर्विध मुक्ति

सर्वांगीण शिक्षा का अनुशीलन करने के लिए–उस शिक्षा का जो हमें अतिमानसिक उपलब्धि की ओर ले जाती है–चार प्रकार की तपस्याओं और चार प्रकार की मुक्तियों की आवश्यकता है।

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नयी कविता और बिहार

नयी कविता से समसामयिक कविता का बोध नहीं होता है। यह समसामयिक हिंदी कविता की एक विशिष्ट धारा है। यह एक साहित्यिक प्रवृत्ति है और इसमें आज का भाव-बोध अधिक व्यंजना के साथ अभिव्यक्ति पाता है।

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विलियम फॉकनर

विलियम फॉकनर के उपन्यास साहित्य में भी हेमिंगवे की तरह जीवनी का बड़ा समावेश है। परंतु अंतर केवल इतना है कि फॉकनर के कल्पित पात्रों में लेखक का जीवन-प्रकाश न होकर उसके परिवार की पिछली पीढ़ियों की झाँकी मिलती है।

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विश्व-शांति की समस्या के संदर्भ में युद्ध-परक साहित्य

‘विश्व-शांति की समस्या के संदर्भ में युद्ध-परक साहित्य’ विषय तीन शब्द-बिंदुओं से सीमित है। ये बिंदु हैं-शांति, युद्ध और साहित्य। शांति का अर्थ प्रस्तुत संदर्भ में विश्व शब्द से संबद्ध है। उसको अध्यात्म समाज और राज की तीन भिन्न दृष्टियों से समझा जा सकता है, परंतु विषय की सीमा का ध्यान रखते हुए प्रथम तथा द्वितीय दृष्टियों को छोड़ देना आवश्यक है। राजनैतिक स्तर पर विभिन्न राष्ट्रों या देशों में परस्पर जो संघर्ष होते हैं, उनकी समाप्ति की स्थिति ही प्रस्तुत संदर्भ में शांति की अर्थ-सीमा में स्वीकार की जा सकती है। युद्ध की अर्थ-सीमा भी आक्रमण और उसके विरोध तक विस्तृत न मानकर, केवल विरोध की स्थिति तक मानी जानी चाहिए, क्योंकि आक्रमणकारी के पशु-बल का यदि गतिरोध न किया जाए, तो युद्ध की स्थिति उत्पन्न नहीं होती। अतः तात्विक दृष्टि से युद्ध आक्रामक भावना का प्रतीक नहीं, अपितु आक्रमण-प्रतिरोध की आकांक्षा की अभिव्यक्ति है। इस दृष्टि से इतिहास के पृष्ठ पर हम जिस घटना को ‘युद्ध’ कहते हैं, वह साहित्य की भाव-भूमि पर शौर्य, शक्ति, तेज और जीवन के ओज का बोध है।

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हिंदी नवलेखन : मूल्यांकन की समस्या के संदर्भ में

आधुनिकता और नवीनता के अन्वेषण में हिंदी की नई पीढ़ी ने जहाँ अपना एक प्रशस्त मार्ग बना लिया है वहाँ उसके समक्ष जटिलताएँ भी उपस्थित हो गई हैं। किसी भी साहित्यिक आंदोलन के कारण उसमें जहाँ बहुत-सी अच्छी चीजें आती हैं–कुछ ऐसी चीजें भी आ जाती हैं।

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नारी ‘भरम’ रही है!

साहित्य विचार-सौंदर्य का सार है; संस्कृति पारस्परिक व्यवहार-सौंदर्य का, संगीत ध्वनि-सौंदर्य का तथा चित्रकला रंग और दृष्टि-सौंदर्य का सार है वैसे ही पुरुष या नारी सृष्टि-सौंदर्य का अंतिम सत्य है।

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