दर्पण की आत्मकथा

मुझे लोग दर्पण के नाम से पुकारते हैं। मैं अति स्वच्छ व निर्मल हूँ। जो जैसी सूरत लेकर मुझ में झाँकेगा वह वैसी ही पाएगा। स्वरूप का दर्शन कराना ही मेरा काम है।

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पं. माधवराव सप्रे का व्यक्तित्व और पत्रकारित्व

मध्यप्रदेश की साहित्यिक, राजनीतिक और सामाजिक जागृति के प्रथम प्रहर में पं. माधवराव सप्रे का नाम अत्यंत आदर से लिया जाता है।

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हिंदी का नया आख्यान साहित्य और मनोविश्लेषण

फ्रायड ने कला की इस परंपरागत यथार्थवादी परंपरा को उलट कर एक मनोवैज्ञानिक सौंदर्य सिद्धांत की स्थापना की। उसके अनुसार कला एक विक्षिप्त और विक्षुब्ध मानस की उपज है। कलाकार एक अभिशप्त व्यक्ति है जो प्रवृत्ति से ही अंतर्मुखी होता है। वह समाज में अपना सामंजस्य पाने में असमर्थ रहता है, इसलिए यथार्थ से पलायन करके वह अपने कल्पनालोक में शरण लेता है।

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मुक्तक कवि कालिदास

ऐसा प्रतीत होता है कि कालिदास ने यक्ष प्रिया के इस मर्मस्पृक् चित्रण में भरतोक्त ‘गेय पद’ को ध्यान में रखा था–

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वैज्ञानिक संपादन की एक छटा

वैज्ञानिक संपादन के विषय में कुछ कहने से लाभ नहीं, उसका रूप भर दिखा देना किसी ‘अकादमी’ का काम है। सो उत्तर प्रदेश की ‘हिंदुस्तानी एकेडेमी’ के वैज्ञानिक संपादन का एक नमूना है ‘जायसी ग्रंथावली’ का ‘प्रामाणिक संस्करण’।

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