होनहार लेखकों से
हिंदी ने कोई रवींद्र जैसा कवि अथवा शरत चंद्र जैसा उपन्यासकार पैदा नहीं किया
हिंदी ने कोई रवींद्र जैसा कवि अथवा शरत चंद्र जैसा उपन्यासकार पैदा नहीं किया
फ्रांस के इस प्रसिद्ध और आदरणीय कलाकार का बचपन पेरिस की संकीर्ण गलियों में व्यतीत हुआ। जवानी कला की आराधना और जीविका कमाने में गुज़री।
सुरशिल्पी भले हो न हो किंतु स्वरशिल्पी होना तो उनके लिए आवश्यक था। चारण और वंदीजन, जो कवियों की रचनाएँ पढ़कर सुनाया करते थे अथवा जो लोग रामायण, महाभारत और पुराणों की कथाओं को गाकर श्रोताओं में विस्मययुक्त भक्ति की भावना भरा करते थे
बंबई से पहले तो अवश्य ही योरोप का सुनहला स्वप्न मुझे अपनी ओर खींच रहा था, पर ज्योंही हम मसावा पहुँचे थे कि प्रवासी इतालवियों के एक बड़े जत्थे के कारण मेरे मन की अँधियारी मिट गई
जब से पूज्य विनोबा जी ने भूदान-यज्ञ का श्रीगणेश किया है तब से आंदोलन के विभिन्न पक्षों से संबंध रखने वाले सैकड़ो प्रश्न इस संबंध में उठ चुके हैं।
जन्म से मृत्यु तक; सुख में, दुख में; हर्ष में, विषाद में, हास्य में, रुदन में सर्वदा किसी-न-किसी रूप में नारी के साथ प्राणीमात्र का संबंध बना ही रहता है।