आधी शताब्दी के विश्व-साहित्य की रूपरेखा

फ्रांस की क्रांति में जनता ने जिस स्वर्णिम विहान का स्वप्न देखा था, वह चूर-चूर हो गया; वैज्ञानिक आविष्कारों ने तप्त मरु में जलती हुई

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कला का भाव-स्रोत

कला का मूल है मनुष्यत्व। मनुष्यत्व की सिद्धि तर्क का प्रसंग नहीं है–तर्क में इतना तात्विक सामर्थ्य नहीं है।

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संत तुकाराम : जीवन और उपदेश

महाराष्ट्र ही क्यों, भारत का प्रत्येक व्यक्ति संत तुकाराम के नाम से परिचित है। उसके अभंग आज भी स्थानों-स्थानों में विद्वानों द्वारा गाये जाते हैं।

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नई वर्षा-नया जीवन

बरसात क्या आ गई गाँव में नया जीवन आ गया है। कोई टाट के थैले की तिकोन ‘घोमची’ ओढ़ कर और कोई अपने शरीर पर के कुरते और बंडी को भी उतार कर, बरसते पानी मैं अपने-अपने काम में संलग्न हो उठे हैं।

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गाँधीवादी अर्थव्यवस्था

“अतएव महानुमाप-उत्पादन के सस्तापन का तर्क कोई मूल्य नहीं रखता। यहाँ कम परिव्यय दूसरों मदों के उन शोषणों के कारण है, जिनका भार न्याय दृष्टि से निर्माणी-स्वामियों पर पड़ना चाहिए था। इस दृष्टि से इसे चोरी किए गए पदार्थों की बिक्री ही समझना चाहिए।”

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