कवि इश्रती
सैयद मुहम्मद खाँ इश्रती के पिता युसूफ हुसैनी और पितामह सैयद हुसैन थे। सैयद यूसुफ भाग्य-परीक्षा करते बसरा (मेसोपोतामिया) से दखिन पहुँचे।
सैयद मुहम्मद खाँ इश्रती के पिता युसूफ हुसैनी और पितामह सैयद हुसैन थे। सैयद यूसुफ भाग्य-परीक्षा करते बसरा (मेसोपोतामिया) से दखिन पहुँचे।
एक दिन आनंद की खोज इस जीवन की सबसे बड़ी भूख थी। आज एटम-बम की तलाश इस जीवन का चरम प्रयास है जैसे।
नाम में क्या धरा है? जो लोग कलकत्ता में ‘खोट्टा’ बन गए, वही बंबई में जाकर ‘भैया’ कहलाए! ‘मेहतर’ का अर्थ है बड़ा, किंतु समाज ने इन्हें कैसा छोटा बना डाला है! हाँ, नाम में क्या धरा है?
सिगरेट के मुँह को दियासलाई की छोटी-सी ज्वाला से जला दिया। प्रश्न उठता है–निर्धनता के जाल में तड़पने वाले प्राणी को सिगरेट पीने का क्या अधिकार?
दुनिया भौगोलिक दृष्टि से छोटी हो गई है : उसका ओर-छोर कुछ घंटों में आदमी नाप सकता है। नहीं चाहने पर भी उसके हिस्से प्राण-तंतुओं से अनुस्यूत हो गए हैं : लंदन और न्यूयार्क में राजनीति करवट बदलती है तो दिल्ली में लोग आँखें मलने लगते हैं;
गाँधी-हत्या-कांड के बाद जब समाजवादी नेता श्री जयप्रकाश नारायण ने देश को आध्यात्मिक नेतृत्व देने के लिए महर्षि रमण का नामोल्लेख किया, तो संभवत: ही इस मनीषी की ओर लोगों की जिज्ञासा जगी! प्रस्तुत लेख उस जिज्ञासा की तृप्ति कर सकेगा, ऐसी आशा है।