महीप सिंह का संपादनकर्म
महीप सिंह से मेरा परिचय 80 के दशक में हुआ और ‘संचेतना’ के लिए कुछ ज्वलंत सवालों पर लिखने की प्रक्रिया आरंभ हुई।
महीप सिंह से मेरा परिचय 80 के दशक में हुआ और ‘संचेतना’ के लिए कुछ ज्वलंत सवालों पर लिखने की प्रक्रिया आरंभ हुई।
इस ग्रंथ पर इस्लाम और कुरआन की आयतों का सर्वत्र प्रभाव ही नहीं उनके भावों को उद्धाटित किया है जायसी ने।
अपनी निद्रा मेघदूत को बेच दी थी। वे जितने बड़े महान कवि थे, उससे और अधिक महत्तर कवि हो सकते थे। बॉडेलेयर, रिल्के, पास्तरनाक ने नहीं होने दिया। वे हमारे वही ‘फॉलेन एंजेल’ हैं जिन्होंने अपनी उच्चता को कुछ ह्रास कर हमारे हाथों में यूरोप थमा दिया है।
पश्चिमी आलोचना-पद्धति के अंधानुकरण के शिकार भारतीय काव्य-शास्त्र के मूल्यांकन के प्रतिमान भी हुए। भारतीय आलोचकों ने न तो अपनी सांस्कृतिक परंपरा पर विशेष ध्यान दिया, न उसका उत्खनन किया और न ही अपनी स्वतंत्र आलोचना-दृष्टि और इतिहास-दृष्टि ही विकसित करने की चेष्टा की।
जब सहेली उससे उसके भविष्य के बारे में पूछती है तो कहती है–‘लाखों की भीड़ में एक और हिराबाई कहीं खो जाएगी।’
हिंदी क्षेत्र के लेखक सामाजिक कुरीतियों से भरसक आँख चुराते हैं। आर्थिक गैर-बराबरी के खिलाफ तो वामपंथी लेखक लिखते-बोलते हैं