अपने समय की पटकथा रचती कविताएँ

मुझे यह कहते हुए संकोच नहीं कि अखबारनवीसी शैली और वायवीय अभिव्यक्ति से अब तक बची युवा कवि शहंशाह आलम की लोक-प्रसूत कविताएँ किसी समालोचना की मोहताज़ नहीं,

और जानेअपने समय की पटकथा रचती कविताएँ

रीतिकाव्य : स्त्री के दृष्टिकोण से

रीतिकाल के कवियों ने एक निश्चित या विशिष्ट प्रणाली को दृष्टिगत रखते हुए काव्य रचना की, क्योंकि रीतिकाल में ‘रीति’ शब्द एक विशेष प्रकार की ‘पद रचना’ या परिपाटी का सूचक है।

और जानेरीतिकाव्य : स्त्री के दृष्टिकोण से

सांप्रदायिक समस्या और प्रेमचंद

प्रेमचंद ने पहली बार लक्ष्य किया कि सांप्रदायिकता किस तरह से संस्कृति का मुखौटा लगाकर सामने आती है। उसे अपने असली स्वरूप में सामने आने में शर्म लगती है इसलिए वह हमेशा संस्कृति की दुहाई देती है।

और जानेसांप्रदायिक समस्या और प्रेमचंद

बेनीपुरी और उनकी ‘माटी की मूरतें’

बेनीपुरी ने ‘माटी की मूरतें’ जैसी जीवंत-कृति की रचना कर साहित्यिक-सांस्कृतिक चिंतन को साकार रूप देने का सफल प्रयास किया है।

और जानेबेनीपुरी और उनकी ‘माटी की मूरतें’

विष्णुचन्द्र शर्मा आदमी के सपनों के कवि

विष्णुचन्द्र शर्मा की कविता ने उनको ताकीद की है कि तुम्हारे जैसे कवि का जीवन ‘सपनों का आख्यान भर नहीं’ है।

और जानेविष्णुचन्द्र शर्मा आदमी के सपनों के कवि

गाँधी के पद-चिह्नों की खोज में

डांडी में स्थानीय सरकार ने संग्रहालय बनाकर अपने हेरिटेज के साथ गाँधी से संबंधित वस्तुओं तथा दस्तावेजों को सहेज रखा है।

और जानेगाँधी के पद-चिह्नों की खोज में