शरण संस्कृति की प्रासंगिकता

भक्त का, शरणत्व पाकर शिवत्व में समा जाने की साधना है। यह शरण की आंतरिक साधना है। अपने तन मन की अल्पता को जीतते,

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प्रेमचंद का ‘मानसरोवर’ और ‘नया मानसरोवर’

‘मानसरोवर’ को नया रूप देने तथा नई उपलब्ध कहानियों को पाठकों तक पहुँचाने के संकल्प में ही ‘नया मानसरोवर’ के प्रकाशन का औचित्य छिपा है।

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अनुरंजन प्रसाद सिंह का रचनाकर्म

अनुरंजन प्रसाद सिंह साहित्य की दुनिया में जिस महत्त्व के अधिकारी हैं, वह महत्त्व उन्हें हम बिहारवासियों ने कभी नहीं दिया।

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अपने समय की पटकथा रचती कविताएँ

मुझे यह कहते हुए संकोच नहीं कि अखबारनवीसी शैली और वायवीय अभिव्यक्ति से अब तक बची युवा कवि शहंशाह आलम की लोक-प्रसूत कविताएँ किसी समालोचना की मोहताज़ नहीं,

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रीतिकाव्य : स्त्री के दृष्टिकोण से

रीतिकाल के कवियों ने एक निश्चित या विशिष्ट प्रणाली को दृष्टिगत रखते हुए काव्य रचना की, क्योंकि रीतिकाल में ‘रीति’ शब्द एक विशेष प्रकार की ‘पद रचना’ या परिपाटी का सूचक है।

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सांप्रदायिक समस्या और प्रेमचंद

प्रेमचंद ने पहली बार लक्ष्य किया कि सांप्रदायिकता किस तरह से संस्कृति का मुखौटा लगाकर सामने आती है। उसे अपने असली स्वरूप में सामने आने में शर्म लगती है इसलिए वह हमेशा संस्कृति की दुहाई देती है।

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