मलखान सिंह सिसौदिया–कविता में मृत्युंजय संकल्प

श्री सिसौदिया की संपूर्ण काव्य-यात्रा संशय रहित मृत्युंजय संकल्प से आविष्ट है और उसकी जड़ें जन सामान्य के जन-संघर्ष और देश की सांस्कृतिक-सामाजिक मनोभूमि में गहरे धँसी हुई हैं। सन् 2010 ई. में दिवंगत हुए मलखान सिंह जी की कुछ कविताएँ अभी संग्रहबद्ध नहीं हो पाई हैं। अच्छा हो कि उनके परिवारजन और आत्मीय लोग उनकी रचनावली के प्रकाशन का संकल्प लें और उनकी अप्रकाशित-असंग्रहबद्ध रचनाओं को भी उनमें सहेजा जाए।

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ईमानदारी का लेखन

इस पुरस्कार समारोह में उपस्थित न हो पाने का मुझे उतना ही दुःख हो रहा है जितना कि भाई के विवाह में मायके न पहुँच पाने की पीड़ा किसी विवाहित बहन को ताउम्र सालती होगी। पर, मेरे लेखन में आप सबकी कृपादृष्टि, आशीर्वाद और मार्गदर्शन निरंतर बना रहे–यही कामना करती हूँ।

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मेरी जिंदगी कविता है

मैं लोगों को जोड़ना पसंद करता हूँ। मैं सच्चे मन से विश्वास करता हूँ कि कविता लोगों को जोड़ती है, मानवी संबंधों को दृढ़ बनाती है। सद्भावना परक सामाजिक परिवेश का निर्माण करना मेरा प्रयास रहा है। मैं लोगों को आपसी सम्मान और विश्वास के दायरे में बँधकर शांति से जीते हुए देखना चाहता हूँ।

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प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानी की खोज

प्रेमचंद के इस ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ के दर्शन को जिसे वे ‘आदर्शोन्मुख यथार्थवाद’ कहते हैं, उसके केंद्रीय भाव को जानना जरूरी है। प्रेमचंद ने अपने साहित्य-कर्म का उद्देश्य बताते हुए लिखा था कि अपने साहित्य से भारतीय आत्मा की रक्षा तथा स्वराज्य प्राप्त करना उनका लक्ष्य है।

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मेरे प्रथम साहित्य-गुरु

लक्ष्मी पुत्रों की चार पीढ़ियाँ माँ सरस्वती के मंदिर में मात्र दीप प्रज्वलित ही न करे–गह्वर को लीप-पोत कर आलीशान प्रसाद बना दे जिसके कँगूरे की चमक स्वतः देदीप्यमान हो उठे–यह एक ऐतिहासिक गाथा है जिसे सार्थक किया है कलम के धनी शैली सम्राट स्व. राजा साहब ने और दिलोदिमाग के धनी प्रसिद्ध कथाकार स्व. उदय राज सिंह ने।

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लेखकीय जिम्मेदारी बढ़ी

इस महत्त्वपूर्ण अवसर पर सबसे पहले तो नई धारा के संस्थापक-संपादक उदय राज सिंह की पावन स्मृति को नमन करता हूँ। साथ ही ‘नई धारा’ पत्रिका के इस गौरवशाली 72 वर्षों के सफर को भी प्रणाम करता हूँ।

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